शिवभोजन योजना आर्थिक संकट में। (सौजन्यः सोशल मीडिया)
अकोला: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को कम कीमत में भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई शिवभोजन थाली योजना आर्थिक संकट में फंसती नजर आ रही है। पिछले दस महीनों से केंद्र संचालकों को अनुदान नहीं मिला है, जिससे वे किराना सामग्री खरीदने के लिए कर्ज लेने को मजबूर हो गए हैं। आपूर्ति विभाग ने वित्तीय सलाहकार और उपसचिव से 3.66 करोड़ रु. के अनुदान की मांग की थी, लेकिन हाल ही में तकनीकी कारणों से 30 लाख रु. की राशि भी वापस चली गई, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई है।
जनवरी 2020 में तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार ने शिवभोजन योजना शुरू की थी, जिसके अंतर्गत जिले में 54 शिवभोजन केंद्र कार्यरत हैं। इन केंद्रों से प्रतिदिन 5,800 थालियों का वितरण किया जाता था। लेकिन आर्थिक संकट के चलते अब यह योजना बाधित हो सकती है, जिससे गरीबों को भोजन मिलने में कठिनाई होगी। शिवभोजन केंद्र संचालकों ने पालक मंत्री एड. आकाश फुंडकर को निवेदन देकर आपूर्ति विभाग से अनुदान जारी करने की मांग की। इसके बाद आपूर्ति विभाग ने वित्तीय सलाहकार और उपसचिव को पत्र भेजकर फंड की आवश्यकता बताई। हालांकि, अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है, जिससे संचालकों में नाराजगी बढ़ रही है।
शिवभोजन चालक संगठन ने बताया कि सितंबर 2024 से मई 2025 तक का अनुदान अब तक नहीं दिया गया है। भुगतान जांच प्रक्रिया में कठिन शर्तें जोड़कर बिल रोक दिए गए हैं। मार्च 2025 तक सरकारी खजाने में फंड मौजूद होने के बावजूद आपूर्ति विभाग ने सभी बिल प्रस्तुत नहीं किए, जिससे केंद्र संचालकों की आर्थिक परेशानियां और बढ़ गई हैं।
संगठन के अध्यक्ष संतोष अनासने और उपाध्यक्ष देवीदास बोदडे ने तत्काल अनुदान जारी करने की मांग की है, ताकि योजना सुचारू रूप से जारी रह सके। इस स्थिति से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के सस्ते भोजन की सुविधा पर संकट मंडरा रहा है। यदि जल्द ही अनुदान जारी नहीं किया गया, तो शिवभोजन थाली योजना बंद होने की नौबत आ सकती है।
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बता दें कि शिवभोजन थाली योजना सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी शासन के दौरान महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक सब्सिडी वाला भोजन कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराना है। इस योजना में 10 रुपये की सब्सिडी वाली दर पर दो चपाती, सब्जियां, चावल और दाल से युक्त पूर्ण भोजन थाली दी जाती है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में थाली की वास्तविक लागत अलग-अलग होती है, शहरी क्षेत्रों में ₹50 और ग्रामीण क्षेत्रों में ₹35 सरकार बाकी लागत वहन करती है, जिससे यह आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे लोगों के लिए एक किफायती विकल्प बन जाता है। यह योजना 26 जनवरी, 2020 को शुरू की गई थी और वंचितों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा एक महत्वपूर्ण पहल रही है।