रावण पूजा (सौ. सोशल मीडिया )
Akola News In Hindi: जहां पूरे देश में विजयादशमी के दिन रावण के पुतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाया जाता है, वहीं जिले के पातुर तहसील स्थित सांगोला गांव में दशहरे पर रावण की पूजा की जाती है।
यह परंपरा वर्षों से श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जा रही है, जो इस गांव को अन्य स्थानों से अलग पहचान देती है। सांगोला गांव के पास बहने वाली मन नदी के किनारे ऋषी महाराज की समाधि है। समय के साथ समाधि स्थल पर एक सिंधी का वृक्ष उग आया, जिसकी जड़ से दस शाखाएं निकलीं।
एक ग्रामवासी ने इन दस शाखाओं के आधार पर दस मुखों वाली मूर्ति बनाने का विचार किया। जिससे शिर्ला के मूर्तिकार द्वारा बनाई गई मूर्ति जब बैलगाड़ी से सांगोला लाई गई और हनुमान जी के मंदिर के पास पहुंची, तो बैलगाड़ी के बैल आगे बढ़ने से इनकार करने लगे। जब ग्रामवासी मूर्ति को उठाने लगे, तो उसका वजन अचानक इतना बढ़ गया कि उसे हिलाना भी असंभव हो गया।
इसे दैवी संकेत मानकर मूर्ति को गांव के पूर्वी खेत में स्थापित कर दिया गया। तभी से रावण पूजा की यह परंपरा शुरू हुई। दशहरे के दिन गांव के प्रत्येक घर से पुरणपोली का नैवेद्य चढ़ाया जाता है और महाप्रसाद का आयोजन होता है। यह परंपरा आज भी श्रद्धा से निभाई जाती है। हालांकि देशभर में रावण दहन की परंपरा है, सांगोला गांव में रावण पूजा को लेकर कई बार विवाद भी हुआ है। बाहरी लोगों के लिए यह जिज्ञासा और चर्चा का विषय बना हुआ है।
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आज भी संगोला गांव में इस मूर्ति की प्रतिदिन पूजा की जाती है। दशहरे के दिन हर घर से पूरणपोली का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। इस दिन गांव में बड़े उत्साह से महाप्रसाद का वितरण किया जाता है। विवाद और आस्था यद्यपि पूरे देश में रावण दहन की परंपरा है, संगोला गांव एकमात्र ऐसी बस्ती है जहां रावण की पूजा की जाती है। कुछ जानकार और रामभक्त इस प्रथा को अंधविश्वास मानते हैं और समय-समय पर इसे बंद करने की मांग करते हैं। फिर भी, ग्रामीणों की आस्था के कारण यह परंपरा आज भी जारी है।