उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे (सौजन्य-एएनआई)
मुंबई: पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी ‘शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ (यूबीटी) व राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के गठबंधन की अटकलें लगातार जोर पकड़ रही हैं। इन सबके बीच ‘यूबीटी’ के नेता व पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे ने राज-उद्धव के फिर साथ आने के संदर्भ में बड़ा खुलासा किया है। खैरे ने कहा है कि राज-उद्धव के बीच बात हो गई है और उद्धव ने यूबीटी की ओर से बात को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अनिल परब को सौंपी है।
सितंबर-अक्टूबर 2025 में संभावित मुंबई मनपा एवं अन्य निकाय चुनावों से पहले महाराष्ट्र में उद्धव और राज के साथ आने की संभावना व्यक्त की जा रही है। खासकर उद्धव गुट इसके लिए ज्यादा उत्सुक नजर आ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आपस में चर्चा से पहले दोनों भाई मनपा चुनाव पर मंथन के बहाने अपनी ताकत की समीक्षा कर रहे हैं।
ऐसा दावा किया जा रहा है शनिवार को राज ठाकरे की ‘शिवतीर्थ’ पर ‘मनसे’ के पदाधिकारियों साथ बैठक और रविवार को उद्धव की ‘मातोश्री’ पर ‘यूबीटी’ के प्रमुख नेताओं, सांसदों, विधायकों एवं विभाग प्रमुखों के साथ बैठक इसी सिलसिले में हुई है। हालांकि, बैठक में शामिल मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडणेकर ने कहा कि बैठक में राज से युति पर कोई चर्चा नहीं हुई लेकिन मनसे के साथ युति के प्रति हम सकारात्मक हैं।
उन्होंने कहा कि बैठक में पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्थानीय स्तर पर घटनाक्रमों की समीक्षा की और अपने क्षेत्र के नागरिकों तक पहुंचने एवं उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत रहने के आदेश दिए हैं।
सूत्रों का दावा है कि दोनों भाइयों को साथ लाने के प्रयास पहले परिवार के लोग एवं पारिवारिक मित्रों के जरिए शुरू किए गए थे। लेकिन विधानसभा चुनाव 2024 के परिणामों के बाद राज और उद्धव ने भी इस बारे में गंभीरता पूर्वक सोचना शुरू किया था।
शिवसेना यूबीटी नेता और पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे ने कहा, “उद्धव-राज को एक साथ आना ही चाहिए। यदि दोनों भाई एक साथ आ गए तो वे भाजपा को उखाड़ फेंकेंगे। अब जो हुआ उसका अब शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के आशीर्वाद से जवाब देने का वक्त आ गया है।
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यूबीटी नेता पूर्व महापौर किशोरी पेडणेकर ने कहा, “मुंबई में 2022 के बाद परप्रांतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है और प्रवासियों की दादागिरी मराठी लोगों पर बढ़ने लगी है। कल्याण, डोंबिवली, भांडुप जैसी जगहों पर घटी घटनाओं में हम ऐसा देख चुके हैं। इसलिए, परप्रांतियों की दादागिरी खत्म करने के लिए मराठी लोगों को सशक्त बनाना जरूरी हो गया है। इसलिए दोनों भाइयों के एक साथ आने की जरूरत है।