मराठा आंदोलन का समाधान निकला (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मराठा आंदोलनकारियों को मुंबई की सड़कें खाली करने के हाईकोर्ट के सख्त आदेश और फिर राज्य सरकार के सक्रियता दिखाने की वजह से इस आंदोलन का हल निकला। मनोज जरांगे की 8 में से 6 मांगें मान लिए जाने पर उन्होंने अपना आमरण अनशन समाप्त किया। मंत्रिमंडल उपसमिति के अध्यक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल ने आजाद मैदान जाकर हैदराबाद गैजेटियर लागू करने संबंधी सरकार का निर्णय पत्र जरांगे को सौंपा तथा मराठा आंदोलनकारियों पर सभी मामले सितंबर के अंत तक वापस लेने का आश्वासन दिया।
आंदोलनकारियों की मूल मांग मराठा समाज को ओबीसी कोटे में से आरक्षण देने की थी। इसलिए आंदोलन की सफलता को लेकर प्रश्न उठ सकता है। मंत्रिमंडल की उपसमिति ने इस मांग का उल्लेख नहीं किया है। असली मुद्दा मराठवाडा के मराठा समाज का है। राज्य के अन्य हिस्सों में इस समाज की स्थिति अलग है। विदर्भ में सारे कुणबी हैं। पश्चिम और उत्तर महाराष्ट्र में गरीब मराठा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन धनवान व राजनीतिक दृष्टि से मजबूत मराठों के प्रभाव की वजह से यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। कोकण में मराठा और कुणबी दोनों की अलग पहचान है। मराठवाडा में वर्तमान 8 तथा पहले के 5 जिले हैदराबाद रियासत के निजाम के अधीन थे। आजादी के एक वर्ष बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो गया। इसके पहले ब्रिटिश जाति जनगणना के आधार पर हैदराबाद स्टेट का इम्पीरियल गैजेटियर जारी किया गया था।
उसमें कुणबी या कापू के नाम से मराठा समाज का नाम दर्ज है। इसे मान्यता देते हुए कुणबी प्रमाणपत्र देने और ओबीसी में शामिल करने की मराठा समाज की मूल मांग है जिसे सरकार ने माना है। हैदराबाद गैजेटियर में सरनेम नहीं हैं। 1881 के इस दस्तावेज में अपने पूर्वज का नाम दिखाना आसान नहीं है। इसी आधार पर सातारा, औंध व बाम्बे गजेटियर को भी मान्य करने की मांग है। इसके लिए सरकार ने समय मांगा है तथा इसका अध्ययन करने के लिए रिटायर्ड हाईकोर्ट जज संदीप शिंदे की समिति का कार्यकाल बढ़ाया गया है। इससे 58 लाख से अधिक लोगों को कुणबी प्रमाणपत्र और जाति वैधता देने की प्रक्रिया को गति मिलेगी। अनेक आयोगों और समितियों ने भी स्पष्ट किया है कि कुणबी और मराठा एक ही हैं। आंदोलन में जान गंवानेवालों के वारिसों को आर्थिक मदद व नौकरी देने की मांग भी मान ली गई। इतने पर भी सारी समस्या हल नहीं हुई।
मुख्य प्रश्न खेती पर निर्भर इस समाज का है। किसानों के बच्चों की उचित शिक्षा व नौकरी, रोजगार का प्रश्न कायम है। यह प्रशंसनीय है कि मुख्यमंत्री फडणवीस ने अत्यंत संयम से आंदोलन से उत्पन्न परिस्थिति संभाली और उचित समय पर हल निकाला। मुद्दा यह भी है कि सरकार किसी की जाति घोषित नहीं कर सकती। प्रवीण लाड विरुद्ध कोल्हापुर जाति जांच समिति मामले में बाम्बे हाईकोर्ट के निर्णयानुसार यदि एक व्यक्ति की जाति की जांच हो गई तो वह पुन: अपनी जाति नहीं बदल सकता। इसे लेकर कानूनी चुनौती दी जा सकती है। अभी कुणबी ओबीसी में हैं और आरक्षण सुविधा पा रहे है। मराठा इस लाभ को हासिल करने के लिए ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर कुणबी होने का दावा कर रहे हैं।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा