
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ (सोर्स: सोशल मीडिया)
Maratha Kunbi Certificate legal News: महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को कुणबी प्रमाण पत्र देकर ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की राज्य सरकार की मुहिम कानूनी दांवपेंच में फंसती नजर आ रही है। राष्ट्रीय ओबीसी मुक्ति मोर्चा द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने सरकार से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा है कि 2 सितंबर को जारी किया गया सरकारी आदेश किस आधार पर वैध है।
राष्ट्रीय ओबीसी मुक्ति मोर्चा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने मराठवाड़ा क्षेत्र में मराठा समुदाय पर ‘विशेष दया’ दिखाते हुए उन्हें ओबीसी श्रेणी में प्रवेश दिलाने का एक अवैध रास्ता तैयार किया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, 2 सितंबर 2024 को जारी किया गया सरकारी आदेश (GR) न केवल संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह मूल ओबीसी समुदाय के अधिकारों पर भी कुठाराघात है।
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि मई 2021 में देश की सर्वोच्च अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने मराठा समुदाय को पिछड़ा वर्ग श्रेणी के मानदंडों को पूरा न करने के कारण अलग आरक्षण देने वाले कानून को रद्द कर दिया था। इसके बावजूद, सरकार द्वारा 2024 में नया आरक्षण कानून बनाया गया, जो पहले से ही बॉम्बे हाईकोर्ट में विचाराधीन है। मोर्चा का तर्क है कि जब मामला कोर्ट में लंबित है, तो सरकार ने चोर दरवाजे से ‘कुणबीकरण’ की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
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राष्ट्रीय ओबीसी मुक्ति मोर्चा का कहना है कि सरकार के इस कदम से वास्तविक ओबीसी समुदायों को भारी नुकसान होगा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मराठवाड़ा के मराठा समुदाय को कुणबी प्रमाण पत्र देकर उन्हें सीधे ओबीसी आरक्षण का लाभ दिलाने का प्रयास किया जा रहा है, जो कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। यह कदम वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित और कानून की मूल भावना के खिलाफ बताया गया है।
न्यायालय ने याचिका में उठाए गए बिंदुओं को गंभीर मानते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। अब सरकार के जवाब पर ही यह निर्भर करेगा कि मराठा समुदाय के कुणबीकरण की यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी या इस पर कानूनी रोक लगेगी। इस फैसले पर प्रदेश के दोनों प्रमुख समुदायों (मराठा और ओबीसी) की नजरें टिकी हुई हैं।






