चंद्रकांत पाटिल,विजय वडेट्टीवार (pic credit; social media)
Maharashtra News: मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल ने मंगलवार को मुंबई के आजाद मैदान पर पांच दिनों से चल रहा अपना अनशन खत्म कर दिया। यह फैसला राज्य सरकार द्वारा हैदराबाद गजेटियर को मान्यता देने और इस संबंध में सरकारी निर्णय (जीआर) जारी करने के बाद लिया गया। आंदोलनकारियों के गांव लौटने से मुंबई ने राहत की सांस ली, लेकिन अब जीआर की उपयोगिता को लेकर नई बहस शुरू हो गई है।
सवाल यह है कि क्या इस जीआर के आधार पर मराठा समाज को वास्तव में आरक्षण का लाभ मिल पाएगा? विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं की राय इस पर बंटी हुई है। कई लोग इसे “फंसावटी समाधान” करार दे रहे हैं, जबकि कुछ इसे चुनावी राजनीति से जोड़ रहे हैं।
उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने साफ कहा कि प्रविष्टियों के आधार पर जारी प्रमाणपत्रों से शिक्षा, नौकरी या चुनाव में कोई फायदा नहीं होगा। उनका कहना है कि सत्यापन प्रक्रिया जरूरी है और अधिकतर प्रमाणपत्र जांच में टिक नहीं पाते।
कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने भी जीआर की वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से संयुक्त रूप से जवाब मांगना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि पहले भी शिंदे समिति को लाखों प्रविष्टियां मिली थीं, लेकिन जाति प्रमाणपत्रों की वैधता आज भी अधूरी है।
मराठा आरक्षण याचिकाकर्ता विनोद पाटील ने तो इस जीआर को “सिर्फ कागज का टुकड़ा” बताया और इसे 100 में से शून्य अंक दिए। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता असीम सरोदे और पूर्व न्यायाधीश बी.जे. कोलसे पाटिल ने भी चेतावनी दी कि यह आदेश आरक्षण कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा। उनके मुताबिक, यदि कानूनी तौर पर मराठों को आरक्षण देना है, तो केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर स्थायी समाधान निकालना होगा।
यानी, अनशन खत्म होने के बावजूद मराठा आरक्षण का मुद्दा अब भी सुलझा नहीं है। जीआर के बाद राज्य में फिर से सस्पेंस बढ़ गया है कि आखिर मराठा समाज को वास्तविक लाभ कब और कैसे मिलेगा।