कैसे करें महालक्ष्मी व्रत का पूजन (सौ.सोशल मीडिया)
Mahalaxmi Vrat 2025: 16 दिनों तक चलने वाले महालक्ष्मी व्रत का समापन इस साल 14 सितंबर को होने जा रहा है। सनातन धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत पितृपक्ष के दौरान पड़ता है। आपको बता दें, पंचांग के अनुसार हर साल महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल अष्टमी से शुरू होता है और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इस व्रत का समापन होता है। ऐसे में आइए जानते है इस व्रत से जुड़ी मान्यताएं और परंपरा।
माता लक्ष्मी की पूजा में सबसे पहले पूजा स्थल पर हल्दी से कमल बनाएं उस पर मां लक्ष्मी की गज पर बैठी मूर्ति स्थापित करें। पूजा में याद से ‘श्रीयंत्र’ जरूर रखें। ये मां लक्ष्मी का प्रिय यंत्र है।
साथ ही सोने चांदी के सिक्के और फल-फूल और माता का श्रृंगार रखें। एक साफ स्वच्छ कलश में पानी भरकर पूजा स्थल पर रखें। इस कलश में पान का पत्ता भी डाल दें और फिर उस पर नारियल रखें। फल, पुष्प, अक्षत से पूजा करें। चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का उद्यापन करें।
गजलक्ष्मी व्रत के दिन मां लक्ष्मी को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है। इस दिन मालपुए का भोग लगाना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। इस भोग को लगाने से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों के घर में सुख और शांति बनी रहती हैं। माता लक्ष्मी की कृपा से धन की कमी नहीं होती है और जीवन से कठिनाइयां दूर होती हैं। इस व्रत को आमतौर पर महिलाएं घर की शांति और खुशहाली के लिए करती हैं। यह व्रत 16 दिन तक चलता हैं। इस दौरान महिलाएं फलाहार करती हैं।
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1. लक्ष्मी मूल मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः।।
2. कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र – ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
3. लक्ष्मी गायत्री मंत्र – ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥
4. ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नम: स्वाहा ॥