
सूरदास जयंती (सौ.सोशल मीडिया)
Surdas Jayanti 2025: सूरदास जयंती हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त माने जाने वाले सूरदास जी की जयंती इस साल 02 मई को मनाई जा रही है। जैसा कि,आप जानते है कि सूरदास जी एक महान कवि और संगीतकार थे। कान्हा की भक्ति में उन्होंने कई गीत, दोहे और कविताएं लिखी हैं।
वे अपनी कविताओं, गीत और दोहों के लिए प्रसिद्ध हुए। महाकवि सूरदास के भक्तिमय गीत आज भी हर किसी को मोहित करते हैं। सूरसागर, सूरसावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं। इसी कड़ी में आइए जानते हैं इस वर्ष कब मनाई जाएगी सूरदास जी जयंती और उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें-
कब है सूरदास जयंती?
आपको बता दें, पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 01 मई को सुबह 11 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, 02 मई को सुबह 09 बजकर 13 मिनट पर वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि समाप्त होगी। इस प्रकार 02 मई को सूरदास जयंती मनाई जाएगी। वहीं, 01 मई को विनायक चतुर्थी है।
सूरदास जयंती पर बन रहे शुभ योग
ज्योतिषियों की मानें तो वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही रवि योग का भी निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, दुर्लभ शिववास योग का भी संयोग बन रहा है। इन योग में सूरदास जी के आराध्य भगवान कृष्ण की पूजा करने से साधक की हर एक मनोकामना पूरी होगी।
कहां हुआ था सूरदास जी का जन्म जानिए
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सूरदास जी का जन्म 1478 ई में रुनकता गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास था। सूरदास जी के आंखों में रोशनी नहीं थी। उनके जन्मांध को लेकर भी लोगों के अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जी के आंखों में जन्म से रोशनी नहीं थी। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार सूरदास जी जन्म से अंधे नहीं थे।
गायन कला से हुए प्रसिद्ध सूरदास जी
कहा जाता है कि, श्री कृष्ण के परम भक्त माने जाने वाले सूरदास जी बचपन से संत प्रवृत्ति के थे। इन्हें गाने की कला वरदान रूप में मिली थी। अपनी गायन की कला के चलते वे जल्द ही प्रसिद्ध हो गए।
इसके बाद वे आगरा के पास गऊघाट पर रहने लगे। यहीं पर उनकी मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुई। वल्लभाचार्य जी ने ही सूरदास जी को पुष्टिमार्ग की दीक्षा दी और श्री कृष्ण की लीलाओं का दर्शन करवाया। वल्लभाचार्य ने इन्हें श्री नाथ जी के मंदिर में लीला गान का दायित्व सौंपा, जिसे ये जीवन पर्यंत निभाते रहे।
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क्यों मांगा था अंधा होने का वरदान भगवान कृष्ण से जानिए
मान्यता के अनुसार एक बार सूरदास कृष्ण की भक्ति में इतने डूब गए थे कि वे एक कुंए जा गिरे, जिसके बाद भगवान कृष्ण ने खुद उनकी जान बचाई और आंखों की रोशनी वापस कर दी। जब कृष्ण भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान में कुछ मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि “आप फिर से मुझे अंधा कर दें। मैं कृष्ण के अलावा अन्य किसी को देखना नहीं चाहता।”






