सोलापुर के कर्निक कॉलोनी में युवक-युवती के प्रेम (सौजन्यः सोशल मीडिया)
सोलापुर: “कल तक हमारी स्वाती हँसती-बोलती थी… आज वो चुपचाप चली गई…” यह शब्द थे उस मां के, जिसने अपनी बेटी को पढ़ने के लिए घर से विदा किया था, लेकिन शाम होते-होते उसकी लाश देखी। सोलापुर के पॉश कर्निक नगर में गुरुवार को 23 वर्षीय युवती और 21 वर्षीय युवक ने एक साथ स्कार्फ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। लेकिन यह सिर्फ एक दुखद अंत नहीं था, यह उन अनकहे रिश्तों और सामाजिक जटिलताओं की परतें भी खोल गया, जिन्हें अक्सर नजरअंदाज़ कर दिया जाता है।
मृत युवती का नाम अश्विनी विरेश केसापुरे (23) था। वह शाहिर वस्ती, सोलापुर की रहने वाली थी और कर्नाटक के बागलकोट जिले के डी फार्मेसी कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। मृत युवक रोहित भिमु ठणकेदार (21), मड्डी वस्ती का निवासी था और पेशे से ट्रक चालक था। परिवार के अनुसार, रोहित अक्सर अश्विनी से मिलने घर आता था। जब इस बारे में पूछा गया, तो अश्विनी ने बताया था, “यह मेरा भाई है।”
गुरुवार सुबह अश्विनी ने अपने घरवालों से कहा कि वह कॉलेज लौट रही है। लेकिन शाम को जब एमआईडीसी पुलिस का फोन आया, तो घर में कोहराम मच गया। मां ने चीखते हुए कहा, “कल तक स्वाती हमारे पास थी, अब वह कहां चली गई?” यह चीख पूरे सरकारी अस्पताल के गलियारों में गूंजती रही।
मौके से मिली डेढ़ पन्नों की चिट्ठी में अश्विनी ने लिखा, “मैं चली जाऊंगी, तो शायद आप खुश होंगे।” वहीं, सोशल मीडिया पर आत्महत्या से एक दिन पहले अश्विनी ने स्टेटस डाला था, “दादा, तुम सिर्फ मानने वाले भाई नहीं हो, सगे भाई से भी बढ़कर हो।” दूसरे स्टेटस में उसने मां के लिए लिखा था, “माँ है तो मुमकिन है, माँ के आँचल से बड़ा कोई साम्राज्य नहीं।” ये शब्द उसकी भावनात्मक उलझनों की ओर इशारा करते हैं।
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घटना के बाद सामने आया कि रोहित, गाडे परिवार की गाड़ी पर चालक था। गाड़ी मालिक ने बताया कि रोहित शादीशुदा था और उसका एक बेटा भी है। वहीं, रोहित के माता-पिता ने दावा किया कि उसकी अभी तक शादी ही नहीं हुई थी। यह विरोधाभास भी जांच का एक अहम हिस्सा बना हुआ है।
पुलिस ने अश्विनी का मोबाइल फोन जब्त कर लिया है। कॉल डिटेल्स, चैट हिस्ट्री और सोशल मीडिया गतिविधियों की जांच की जा रही है। वहीं, आत्महत्या जिस बंगले में हुई, वह किसका है और दोनों वहां कैसे पहुंचे, इसकी भी जांच जारी है।
यह घटना सिर्फ 2 लोगों की मौत नहीं, बल्कि रिश्तों, समाज और संवाद की कमी से उपजी एक त्रासदी है। कभी “भाई” कहकर समाज को संतुष्ट किया गया, लेकिन भीतर क्या चल रहा था, शायद कोई नहीं जान पाया। और जब सच सामने आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।