सांकेतिक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
चंद्रपुर: महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी के बिजली दरों में आगामी दिनों में वृद्धि करने के प्रस्ताव से राज्य के मध्यम एवं लघु उद्योग संकट में घिरने की आशंका एमआईडीसी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने व्यक्त की है। बिजली दरों में वृद्धि से कई उद्योग सस्ती बिजली वाले राज्यों में स्थानांतरित होने की चिंता भी एसोसिएशन ने जताई है।
एमआईडीसी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के स्थानीय अध्यक्ष मधुसूदन रूंगटा ने बताया कि, महाराष्ट्र राज्य बिजली वितरण कंपनी ने वर्ष 2025 से 2030 के लिए बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में वित्तीय वर्ष 2025-26 से 2029-30 तक बिजली शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव है, जिससे 48,060 करोड़ के राजस्व घाटे की भरपाई की जा सके।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार कृषि विद्युत सब्सिडी और विभिन्न पूंजीगत व्यय योजनाओं के लिए 17,700 करोड़ की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। उन्होंने कहा कि उद्योगों पर विद्युत शुल्क वृद्धि का विपरीत प्रभाव दिखाई देने की आशंका है।
विद्युत शुल्क में बढ़ोतरी से विनिर्माण लागत और औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। अगले पांच वर्षों में ईंधन समायोजन लागत लागू करने से बिजली शुल्क में और वृद्धि होगी। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि उद्योगों को डर है कि बढ़ते बिजली शुल्क से वे भारत के अन्य क्षेत्रों की तुलना में गैर-प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
अन्य वितरण कंपनियां जैसे अडानी एनर्जी और टाटा पावर, वित्तीय वर्ष 2025-30 के लिए शुल्क में कमी के प्रस्ताव ला रही हैं, जिससे महाराष्ट्र बिजली वितरण कंपनी के टैरिफ अनुपयोगी साबित हो सकते हैं।
महाराष्ट्र बिजली वितरण कंपनी ने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों और ओपन-एक्सेस उपभोक्ताओं पर ग्रिड समर्थन शुल्क और प्रतिक्रियाशील शुल्क लगाने का प्रस्ताव दिया है। कई स्रोतों से बिजली प्राप्त करने वाले उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त मांग शुल्क लगाने से महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा उत्पादन हतोत्साहित हो सकता है।
इतना ही नहीं बल्कि, एमएसएमईडीसीएल ने नेट-मीटरिंग वाले छत सौर ऊर्जा घरेलू उपभोक्ताओं के लिए शुल्क को तीन गुना बढ़ाने की योजना बनाई है, जो राज्य और केंद्र सरकार की नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली नीतियों के विपरीत है।
मधुसूदन रूंगटा ने बताया कि विदर्भ और मराठवाड़ा के उद्योगों को मुंबई स्थित वितरण कंपनियों को बिजली आपूर्ति करने वाली लंबी पारेषण लाइनों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों के बावजूद, मुंबई की वितरण कंपनियां एमएसईडीसीएल उपभोक्ताओं की तुलना में कम पारेषण शुल्क का लाभ उठा रही हैं, जिसे ठीक करने की आवश्यकता है।
एमआईडीसी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि एमईआरसी के नए प्रावधान के अनुसार, उद्योगों को औसत ऊर्जा बिल के दो महीने के बराबर सुरक्षा राशि प्रदान करनी होगी, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2025-30 के लिए टैरिफ प्रस्ताव में सुझाई गयी बिजली शुल्क में अनुचित वृद्धि, जिससे लागत प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी। उच्च निश्चित शुल्क, जिससे कम खपत वाले उद्योगों के लिए भी बिजली महंगी होगी।
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उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि, निश्चित और मांग शुल्क का युक्तिकरण करके औद्योगिक बोझ को कम किया जाए, सौर और पवन ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रोत्साहन देकर नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए, बार-बार होने वाली बिजली कटौती और वोल्टेज उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए ग्रिड विश्वसनीयता में सुधार किया जाए, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने वाले ओपन-एक्सेस उपभोक्ताओं के लिए व्हीलिंग शुल्क में कमी की जाए।
मधुसूदन रूंगटा चिंता जताते हुए कहा कि उद्योगों को वोल्टेज उतार-चढ़ाव और आउटेज के कारण उद्योगों को बार-बार शटडाउन का सामना करना पड़ रहा है। पिछले 16 महीनों में बिजली कटौती के कारण अनुमानित वित्तीय नुकसान 8.68 करोड़ रुपए हुआ है।
एमएसएमईडीसीएल को चाहिए कि विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे के उन्नयन में निवेश करें। उन्होंने बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव मंजूर करने से पहले उपभोक्ताओं से परामर्श करने का भी सुझाव दिया।