दांतों की सफाई के लिए फायदेमंद है दातुन (सौ.सोशल मीडिया)
Datun For Teeth: दांतों की सफाई के लिए पुराने समय में लोग दातुन का इस्तेमाल करते थे। अभी दांतों की सफाई के लिए टूथब्रश और पेस्ट से जैसे तरीके आ गए है लेकिन पहले के समय में दातुन ही दांतों की सफाई का जरिया था। केमिकल युक्त पेस्ट या टूथब्रश की जगह लोग नीम, बबूल और करंज जैसे पेड़ों की टहनियों से अपने दांतों और मसूड़ों की देखभाल करते थे। पहले जहां पर यह दांतों की सफाई का जरिया थी वहीं पर दांतों, मसूड़ों और संपूर्ण मुख स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदिक रूप से काम करती थी।
यहां पर दातुन का उल्लेख आयुर्वेद में किया गया है। इसके अनुसार, दातुन का उल्लेख ‘प्रभाते दन्तधावनम्’ श्लोक के माध्यम से मिलता है, जिसमें सुबह उठकर दांतों की सफाई को दिनचर्या का अनिवार्य अंग बताया गया है। परंतु यहां ब्रश नहीं, बल्कि विशेष पेड़ों की दातुन को प्राथमिकता दी गई है। नीम और बबूल की टहनियां कड़वी होती हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से जीवाणुनाशक, एंटीसेप्टिक और कसैले गुण पाए जाते हैं। जब इन्हें चबाया जाता है, तो यह मुंह में एक प्रकार का झाग बनाते हैं जो बैक्टीरिया को नष्ट करता है और दांतों के चारों ओर जमा गंदगी को साफ करता है।
यहां पर दातुन का इस्तेमाल करने वाले फायदों के बारे में भी बताया गया है। यानि दातुन का इस्तेमाल करने से इसके रेशे आपके दांतों के बीच जाकर प्राकृतिक फ्लॉस की तरह काम करते हैं। इससे प्लाक और फूड पार्टिकल्स हटते हैं। दातुन की नोक से मसूड़ों की मालिश होती है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है और मसूड़े मजबूत बनते हैं। नीम और बबूल में मौजूद कड़वे और कसैले रस मसूड़ों से खून आना, सूजन और बदबू जैसी समस्याओं को जड़ से खत्म करते हैं।
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यहां पर बताया जाता है कि, अगर आप दातुन की बजाय टूथब्रश का इस्तेमाल करते है तो इसके नुकसान भी आपको मिल सकते है। टूथपेस्ट में मौजूद फ्लोराइड और अन्य केमिकल लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर नुकसानदायक हो सकते हैं, जबकि दातुन एक 100 प्रतिशत प्राकृतिक विकल्प है। यह न केवल दांतों को साफ करता है, बल्कि पूरे मुंह की सेहत को संतुलित करता है। इसमें मौजूद औषधीय गुण मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं और लंबे समय तक सांसों को फ्रेश बनाए रखते हैं।प्राचीन काल में राजा-महाराजा से लेकर ऋषि-मुनि तक सभी दातुन का प्रयोग करते थे। यौगिक दिनचर्या में इसे शरीर को शुद्ध और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए अनिवार्य माना गया है। यही कारण है कि कई गांवों और पारंपरिक घरों में आज भी सुबह-सुबह लोग नीम या बबूल की टहनी लेकर चबाते दिखाई देते हैं।