
पृथ्वीराज कपूर का बेमिसाल रिकॉर्ड: 5,982 दिनों में 2,662 थिएटर शो, क्यों उठानी पड़ी थी झोली?
Prithviraj Kapoor Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा जगत के उस महान स्तंभ की कहानी, जिनकी दमदार आवाज और जबरदस्त अभिनय क्षमता के सामने अच्छे-अच्छे कलाकार फीके पड़ जाते थे—वह शख्सियत थे पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor)। 3 नवंबर 1906 को अविभाजित भारत के पंजाब में जन्मे इस महान कलाकार को छोटी उम्र से ही अभिनय का शौक था, और उन्होंने अपने अभिनय से सिनेमा और थिएटर जगत को एक नई मजबूती दी।
साइलेंट मूवी के दौर से लेकर पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ तक, पृथ्वीराज कपूर ने अपनी छाप छोड़ी। उन्हें उनकी दमदार आवाज और अनोखे अंदाज़ के लिए हमेशा पहचाना गया। ‘प्रेसिडेंट’ और ‘दुश्मन’ जैसी फिल्मों में भी उनका अभिनय शानदार रहा। उन्हें जानने वाले प्यार से ‘पापाजी’ कहकर पुकारते थे, क्योंकि वह जूनियर कलाकारों की सहायता और उनके हक में बात किया करते थे।
पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में पृथ्वी थिएटर्स की शुरुआत की थी। इस थिएटर तक पहुंचने का सफर जितना कठिन था, उससे कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण इसे चलाए रखना था, क्योंकि पृथ्वीराज अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके थे। थिएटर की कमाई इतनी भी नहीं होती थी कि वह ठीक ढंग से गुजारा कर सकें; जो थोड़ी-बहुत आमदनी होती थी, वह थिएटर के ही कामकाज में लग जाती थी।
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वित्तीय चुनौतियाँ सामने पहाड़ जैसी विशाल थीं। इन परिस्थितियों के सामने टिके रहने के लिए, पृथ्वीराज कपूर ने एक अनूठा कदम उठाया। वह फकीर वाला झोला लेकर थिएटर के बाहर खड़े हो जाया करते थे। शो देखने के बाद जब लोग बाहर निकलते थे, तो खुद ‘पापाजी’ झोली लेकर खड़े हो जाते, और शो से निकलने वाले लोग उसमें कुछ पैसे डाल दिया करते थे। समाचार पत्रों में पृथ्वीराज कपूर से जुड़ी इस कहानी का उल्लेख मिलता है, जो उनके थिएटर के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
पृथ्वी थिएटर्स 1944 से 1960 तक, 16 साल तक चला। इस दौरान कुल 5,982 दिनों में 2,662 शो किए गए। पृथ्वीराज कपूर ने हर एक शो में मुख्य भूमिका निभाई। यानी, उन्होंने औसतन हर तीसरे दिन एक शो किया, जो अपने आप में एक अनोखा रिकॉर्ड है और उनकी बेमिसाल लगन को दिखाता है। हालांकि, 1960 में खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें इसे बंद करना पड़ा। 29 मई 1971 को पृथ्वीराज कपूर इस दुनिया को अलविदा कह गए।
सिनेमा और थिएटर में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पृथ्वीराज कपूर को कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया, 1954 और 1956: संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार। 1969: भारत सरकार की ओर से ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार। 1972: मरणोपरांत हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार ‘दादासाहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।






