राजेश खन्ना, असरानी (फोटो-सोर्स,सोशल मीडिया)
Rajesh Khanna Asrani Friendship: हिंदी सिनेमा की दुनिया में अपनी अद्भुत कॉमिक टाइमिंग और यादगार किरदारों से दर्शकों को दशकों तक हंसाने वाले अभिनेता गोवर्धन असरानी अब इस दुनिया में नहीं रहे। 84 वर्ष की उम्र में उन्होंने 20 अक्टूबर को मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। लंबे समय से बीमार चल रहे असरानी के निधन से पूरे बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई है।
दरअसल, 1 जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर में जन्मे असरानी का परिवार कालीन कारोबार से जुड़ा था। पिता चाहते थे कि बेटा पारिवारिक व्यवसाय संभाले, लेकिन असरानी का दिल फिल्मों में बसता था। घरवालों के विरोध के बावजूद उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में दाखिला लिया और वहीं से अभिनय की बारीकियां सीखीं।
1967 में उन्होंने फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से डेब्यू किया, लेकिन शुरुआती दौर संघर्ष भरा रहा। एक मौके पर असरानी ने अपनी परेशानी तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी से साझा की। उनके सुझाव के बाद असरानी को फिल्मों में अवसर मिलने लगे और 1971 की फिल्म ‘गुड्डी’ ने उन्हें पहचान दिलाई। लेकिन खास बात ये है कि बहुत कम लोग जानते हैं कि वो सुपरस्टार राजेश खन्ना के सबसे पसंदीदा अभिनेताओं में से एक थे और दोनों ने साथ में करीब 25 फिल्मों में काम किया था।
असरानी और सुपरस्टार राजेश खन्ना की दोस्ती पूरे इंडस्ट्री में मशहूर थी। दोनों ने साथ मिलकर करीब 25 फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘बावर्ची’, ‘अवतार’, ‘अमर दीप’, ‘नौकर’ और ‘कुदरत’ जैसी फिल्में शामिल हैं। राजेश खन्ना अक्सर अपने निर्देशकों से कहते थे कि असरानी को उनकी फिल्मों में जरूर लिया जाए।
जहां असरानी को उनकी कॉमिक भूमिकाओं के लिए जाना जाता है, वहीं उन्होंने कई गंभीर और इमोशनल रोल्स भी निभाए। ‘छोटी सी बात’ में नागेश शास्त्री और ‘अभिमान’ में चंदर का किरदार आज भी लोगों के दिलों में बसता है।
लेकिन 1975 में आई क्लासिक फिल्म ‘शोले’ ने असरानी को अमर बना दिया। उनका “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” वाला डायलॉग हिंदी सिनेमा के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। इस रोल के लिए उन्होंने हिटलर की चाल-ढाल का अध्ययन कर उसे कॉमिक अंदाज़ में पेश किया था।
असरानी ने लगभग 350 फिल्मों में काम किया और निर्देशन में भी हाथ आजमाया। उनकी निर्देशित फिल्मों में ‘चला मुरारी हीरो बनने’, ‘हम नहीं सुधरेंगे’ और ‘अमदावद नो रिक्शावालो’ शामिल हैं। 1974 में उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट कमीडियन अवॉर्ड मिला, जबकि गुजराती फिल्म ‘सात कैदी’ के लिए गुजरात सरकार ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और निर्देशक का पुरस्कार दिया।
ये भी पढ़ें- रूह कंपा देने वाली फिल्म ‘वश लेवल 2’ OTT पर धमाल मचाने के लिए तैयार, जानें क्या है कहानी का ट्विस्ट
असरानी आखिरी बार 2023 में ‘ड्रीम गर्ल 2’ और ‘नॉन स्टॉप धमाल’ में नजर आए थे। उनका अंतिम संस्कार मुंबई के सांताक्रूज श्मशान भूमि में सादगी से किया गया, जैसा कि उनकी आखिरी इच्छा थी। गोवर्धन असरानी भले ही इस दुनिया से चले गए हों, लेकिन उनके डायलॉग, अभिनय और हंसी की विरासत हमेशा भारतीय सिनेमा का हिस्सा बनी रहेगी।