
तरारी विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो )
Tarari Assembly Seat Profile: बिहार के भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बनी हुई है। यह सीट आरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। एक समय यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित रहा था, लेकिन अब चुनावी मुकाबला पूरी तरह से विकास के मुद्दे और जातीय समीकरणों पर केंद्रित हो गया है। इस बार तरारी सीट पर कुल 15 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिससे मुकाबला काफी रोमांचक और अनिश्चित हो गया है।
इस सीट पर तीन प्रमुख दलों के उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना दिखायी दे रही है।
भाकपा-माले (CPIML): मदन सिंह
भाजपा (BJP): विशाल प्रशांत
जन स्वराज पार्टी: चंद्रशेखर सिंह
तरारी विधानसभा क्षेत्र सोन नदी के किनारे बसी एक उपजाऊ भूमि है, जहाँ की जीवनशैली मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। इस क्षेत्र में पीरो नगर पंचायत, पीरो उपमंडल के सात ग्राम पंचायत, और तरारी व सहार प्रखंड शामिल हैं। इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल भी इसे खास बनाते हैं, जिसमें कई स्थल शामिल हैं…..
1. सूर्य मंदिर: तरारी का सूर्य मंदिर, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी या उससे पहले का बताया जाता है, सूर्य भगवान और अन्य देवी-देवताओं को समर्पित है।
2. महामाया मंदिर: सहार प्रखंड के एकवारी गांव में स्थित यह मंदिर मुगलकालीन माना जाता है।
3. पयहारी जी का आश्रम: धरमपुर गांव में स्थित यह आश्रम भी इस क्षेत्र की धार्मिक धरोहर का हिस्सा है।
2008 के परिसीमन से पहले तरारी को पीरो विधानसभा के नाम से जाना जाता था। उस समय इस सीट पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टियों का दबदबा रहा था, हालांकि वाम दलों ने भी बीच-बीच में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। बाद के वर्षों में बाहुबली नेता नरेंद्र नाथ पांडेय उर्फ सुनील पांडेय का प्रभाव इस क्षेत्र में काफी बढ़ा, जिन्होंने पीरो सीट से तीन बार विधायक के रूप में जीत हासिल की। परिसीमन के बाद जब यह सीट तरारी बनी, तो 2010 में सुनील पांडेय ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की।
पिछले कुछ चुनावों में इस सीट पर वाम दल (भाकपा-माले) और सुनील पांडेय के परिवार के बीच सीधा संघर्ष देखने को मिला है। आपको याद होगा कि साल 2015 में यह सीट भाकपा-माले के खाते में गई, जब सुदामा प्रसाद ने जीत दर्ज की। वहीं 2020 के चुनाव में भाकपा-माले के सुदामा प्रसाद ने निर्दलीय लड़ रहे सुनील पांडेय को हराया, जबकि भाजपा के कौशल कुमार विद्यार्थी तीसरे स्थान पर रहे।
इसके बाद साल 2024 में इस सीट पर उपचुनाव हुए, क्योंकि 2024 में सुदामा प्रसाद के सांसद बन गए थे। इस उपचुनाव में, सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल करके सीट को अपने परिवार के प्रभाव में वापस ला दिया।
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तरारी की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। यहाँ भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है और उन्हें ही इस सीट पर किंगमेकर माना जाता है। इसके अलावा, दलित, महादलित, राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य और यादव मतदाता भी अच्छी-खासी तादाद में हैं। इन सभी वर्गों के वोटों का झुकाव ही चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है।
इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाकपा-माले फिर से इस सीट पर कब्जा जमाती है, या भाजपा के विशाल प्रशांत अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए जीत दोहराते हैं, या फिर जन स्वराज पार्टी का चंद्रशेखर सिंह इन दोनों को कड़ी चुनौती देते हुए मुकाबला अपने नाम करते हैं। अब तरारी के 15 उम्मीदवारों का फैसला पूरी तरह से वहाँ के जागरूक मतदाताओं के हाथ में है।






