मोरवा विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Morwa Assembly Constituency: बिहार के समस्तीपुर जिले की मोरवा विधानसभा सीट आगामी चुनाव में एक बार फिर सियासी हलचल का केंद्र बन गई है। उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट हमेशा से कांटे की टक्कर के लिए जानी जाती रही है। यहां का चुनावी परिणाम न केवल राज्य की राजनीति को प्रभावित करता है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई देती है।
मोरवा कस्बा समस्तीपुर जिला मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह उपजाऊ गंगा के मैदान का हिस्सा है और बूढ़ी गंडक नदी की निकटता इसे कृषि के लिए अनुकूल बनाती है। धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती यहां की प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। कुछ छोटे स्तर के कृषि आधारित उद्योग भी यहां मौजूद हैं, लेकिन रोजगार के अवसर सीमित हैं।
मोरवा विधानसभा सीट का गठन 2008 के परिसीमन के बाद हुआ। पहला चुनाव 2010 में हुआ, जिसमें जदयू के वैद्यनाथ सहनी ने राजद के अशोक सिंह को हराकर जीत दर्ज की। 2015 में जदयू महागठबंधन का हिस्सा था और विद्या सागर निषाद ने भाजपा के सुरेश राय को हराया। 2020 में समीकरण बदले और राजद के रणविजय साहू ने दस हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की।
मोरवा की राजनीति में जातीय समीकरण सबसे प्रभावशाली तत्व हैं। सहनी समाज, जो निषाद समुदाय का हिस्सा है, यहां की सबसे बड़ी आबादी है। यह समाज न केवल संख्या में बड़ा है, बल्कि मतदान के प्रति सबसे अधिक जागरूक भी है। मछली पालन से जुड़ी इस समुदाय की क्षेत्रीय पहचान इसे राजनीतिक रूप से मजबूत बनाती है।
मोरवा में मुस्लिम और यादव मतदाता मिलकर लगभग 30 प्रतिशत वोट बैंक बनाते हैं, जो राजद के लिए एक विश्वसनीय आधार है। इसके अलावा ब्राह्मण और राजपूत मतदाता भी चुनावी तस्वीर में अहम भूमिका निभाते हैं। यह बहुजातीय संरचना हर चुनाव को जटिल और प्रतिस्पर्धी बना देती है।
पटना से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित मोरवा में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी और गरीबी की स्थिति चुनावी विमर्श में प्रमुखता से शामिल हो रही है। हालांकि, जातीय समीकरण इन मुद्दों पर अक्सर भारी पड़ते हैं, जिससे विकास की चर्चा पीछे छूट जाती है।
इस बार मोरवा में जदयू और राजद के बीच पारंपरिक मुकाबले के साथ-साथ जन सुराज पार्टी भी मैदान में है। जन सुराज ने इस सीट से कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉ. जागृति ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। यह नया समीकरण मतदाताओं के रुझान को प्रभावित कर सकता है।
मोरवा के मतदाता किसी एक दल के बंधक नहीं हैं। 2020 में राजद की जीत ने यह साबित किया कि यहां बदलाव की स्वीकार्यता है। 6 नवंबर को होने वाले मतदान में बेरोजगारी, विकास और जातीय समीकरणों के बीच संतुलन तय करेगा कि इस बार किसका परचम लहराएगा।
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मोरवा विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल दलों की ताकत की परीक्षा नहीं, बल्कि मतदाताओं की सोच, सामाजिक संतुलन और विकास की मांग का भी प्रतिबिंब होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पारंपरिक दल अपनी पकड़ बनाए रखेंगे या कोई नया चेहरा इस सियासी बिसात को पलट देगा।