
लंदन में छिपे हैं आसिम मुनीर के 2 बड़े दुश्मन, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistani Critics In London: पाकिस्तान ने लंदन में रह रहे अपने दो सबसे मुखर आलोचकों शाहजाद अकबर और आदिल राजा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को तेज कर दिया है। गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने ब्रिटिश उच्चायुक्त जेन मैरियट से मुलाकात कर दोनों के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग रखी।
इस दौरान नकवी ने ब्रिटिश अधिकारियों को सरकारी दस्तावेज, साक्ष्य और आरोपों की विस्तृत रिपोर्ट भी सौंप दी। नकवी ने कहा कि शाहजाद अकबर और आदिल राजा पाकिस्तान में कई गंभीर मामलों में वांटेड हैं और उन्हें तुरंत वापस भेजा जाना चाहिए।
नकवी ने दावा किया कि पाकिस्तान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता है, लेकिन फर्जी खबरों और प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल किसी भी देश की स्थिरता के लिए खतरा बनता जा रहा है। उनके अनुसार दोनों व्यक्तियों के खिलाफ ऐसी गतिविधियों में शामिल होने के ठोस सबूत मौजूद हैं।
आदिल राजा, जो एक वरिष्ठ पत्रकार और ह्यूमन राइट्स वॉच से जुड़े रहे हैं, लंबे समय से पाकिस्तान सेना और उसकी नीतियों की खुली आलोचना करते आए हैं। अप्रैल में उन्होंने दावा किया था कि पहलगाम आतंकी हमला सेना प्रमुख आसिम मुनीर के इशारे पर कराया गया था। राजा ने खुफिया सूत्रों के हवाले से कहा था कि यह हमला मुनीर के खिलाफ चल रही जांचों को कमजोर करने के उद्देश्य से करवाया गया।
राजा का आरोप है कि मुनीर विदेशों में बसे पाकिस्तानी समुदाय को भड़काने वाली बयानबाजी करते हैं और आतंकवादी घटनाओं के बाद सुरक्षा के नाम पर अपना राजनीतिक नियंत्रण बढ़ाते हैं। यही खुली आलोचना उन्हें सेना के निशाने पर ले आई।
दूसरी तरफ, शाहजाद अकबर इमरान खान सरकार में एंटी-करप्शन सलाहकार थे और कई बड़े मामलों की जांच उनके नेतृत्व में हुई। वे सार्वजनिक मंचों पर सेना और आसिम मुनीर की राजनीतिक दखलअंदाजी पर सवाल उठाते रहे। यही वजह थी कि उनके और सेना के रिश्ते लगातार बिगड़ते गए।
2022 में इमरान खान की सरकार गिरने के बाद अकबर के खिलाफ पाकिस्तान में कई जांचें शुरू हुईं और उनका नाम एग्जिट कंट्रोल लिस्ट (ECL) में डाल दिया गया। अदालत की अनुमति के बाद वे ब्रिटेन चले गए, लेकिन इसके बाद उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया।
अकबर ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान में राजनीतिक प्रताड़ना, जान से मारने की धमकियां और एसिड अटैक की कोशिशों का सामना करना पड़ा। इसी कारण उन्होंने ब्रिटेन में शरण ली। वे आज भी वहीं से पाकिस्तान की राजनीति और सेना के बढ़ते प्रभाव पर टिप्पणी कर रहे हैं।
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अब पाकिस्तान सरकार के इस औपचारिक अनुरोध पर ब्रिटिश प्रशासन की प्रतिक्रिया बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के संबंध, मानवाधिकार मामलों की संवेदनशीलता और राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए प्रत्यर्पण प्रक्रिया आसान नहीं होने वाली।






