
जनरल आसिम मुनीर, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan Political Crisis: पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर इन दिनों अंतरराष्ट्रीय फोकस में हैं। देश के संविधान और राजनीतिक ढांचे में हुए हालिया बदलावों ने अमेरिका, यूरोप और संयुक्त राष्ट्र को चिंतित कर दिया है। दुनिया भर की नजरें अब पाकिस्तान की ओर मुड़ी हुई हैं, क्योंकि वहाँ सेना की पकड़ पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होती दिख रही है।
अमेरिका के 49 सांसदों ने एक संयुक्त पत्र लिखकर विदेश मंत्री मार्को रुबियो को चेताया है कि पाकिस्तान में तेजी से तानाशाही के हालात बन रहे हैं। सांसदों का आरोप है कि जनरल मुनीर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रहे हैं और वास्तविक सत्ता उनके हाथों में केंद्रित हो गई है।
पत्र में कहा गया है कि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार पूरी तरह सेना पर निर्भर है। जनरल मुनीर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई, तो मानवाधिकार, राजनीतिक स्वतंत्रता और न्याय व्यवस्था का ढांचा पूरी तरह टूट सकता है। इसलिए अमेरिका से मांग की गई है कि वह पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संरचना को बचाने में हस्तक्षेप करे।
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद के प्रमुख वोल्कर तुर्क ने भी पाकिस्तान में किए गए संवैधानिक संशोधनों पर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि हालिया बदलाव न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खत्म करने वाले हैं और पाकिस्तान में शक्तियों का संतुलन पूरी तरह सेना के पक्ष में झुक गया है।
UN ने कहा कि कई वरिष्ठ जजों का इस्तीफा देना इस संकट की गहराई को दर्शाता है। संगठन ने पाकिस्तान से अपील की है कि वह ऐसे कदम वापस ले, जो शासन प्रणाली को सैन्य नियंत्रण में धकेल रहे हैं।
ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की रिपोर्ट में पाकिस्तान में हुई घटनाओं को “संवैधानिक तख्तापलट” बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 1973 का संविधान बार-बार सैन्य हस्तक्षेपों से कमजोर हुआ, लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पाकिस्तान लोकतांत्रिक मार्ग पर लौट रहा था।
यह भी पढ़ें:- 4 साल बाद दिल्ली आ रहे पुतिन… लेकिन कांप रहा इस्लामाबाद, जानिए क्यों बढ़ गई शहबाज-मुनीर की टेंशन?
हालांकि नवंबर में हुए 27वें संवैधानिक संशोधन ने हालात बदल दिए। इस संशोधन के बाद से जनरल मुनीर को तीनों सेनाओं (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) पर सीधा नियंत्रण मिल गया और इसके साथ ही…
यह सवाल अब अहम है कि अमेरिका, UN और यूरोप की आपत्तियों के बाद पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव किस रूप में बढ़ेगा। क्या प्रतिबंधों की ओर कदम बढ़ेंगे, या कूटनीतिक वार्ता का रास्ता अपनाया जाएगा? फिलहाल इतना साफ है कि पाकिस्तान एक नए राजनीतिक और संवैधानिक संकट के दौर में प्रवेश कर चुका है।






