गाजीपुर में गंगा में मिला तैरता हुआ पत्थर (सोर्स- सोशल मीडिया)
Floating Stone in Ganga: गाजीपुर जिले के ददरी घाट के किनारे इस समय श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। यहाँ गंगा नदी में एक तैरता हुआ पत्थर मिला है, जिसे लोग चमत्कार मानकर पूजा कर रहे हैं। दावा है कि पत्थर का वजन 2-3 क्विंटल है और यह गंगा नदी के पानी में तैर रहा था। जब लोगों ने यह देखा, तो उन्होंने पत्थर को खींचकर किनारे पर ले आए।
धीरे-धीरे यह जानकारी आस-पास के गाँवों तक पहुँच गई। लोग इस चमत्कार को देखने के लिए पहुँचने लगे। साथ ही, महिलाओं ने यहाँ पूजा-अर्चना शुरू कर दी। इतना ही नहीं स्थानीय हनुमानगढ़ी मंदिर के पुजारी भी इसे भगवान राम का चमत्कार मान रहे हैं।
मंदिर के पुजारी संत रामाधार ने बताया कि जब वे हर दिन की तरह मंदिर पहुँचे, तो कुछ श्रद्धालुओं ने उन्हें यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गंगा नदी में एक विशाल पत्थर तैरता हुआ दिखाई दिया, जिसे किनारे पर लाया गया है। पुजारी ने कहा कि यह पत्थर त्रेता युग का हो सकता है, जैसा कि रामायण में वर्णित है।
उत्तर प्रदेश – जिला गाजीपुर की गंगा में एक बड़ा पत्थर तैरता हुआ आ गया। वजन 2 कुंतल के आसपास है। न डूब रहा है, न किसी से उठ रहा है। लोगों ने रामसेतु के पत्थर से जोड़कर इसकी पूजा–अर्चना शुरू कर दी है। pic.twitter.com/FPihE4ayBj — Sachin Gupta (@SachinGuptaUP) July 19, 2025
उन्होंने कहा कि जिस तरह भगवान राम ने तैरते पत्थरों से पुल का निर्माण किया था। हो न हो यह भी वही पत्थर है। सदियों बाद अगर यह किसी तरह गंगा नदी के रास्ते यहाँ पहुँचा, तो यह हमारे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह भगवान श्री राम की कृपा है।
स्थानीय लोगों ने इस पत्थर की पूजा शुरू कर दी है। इसे रामेश्वरम के उन पत्थरों से जोड़ा जा रहा है, जिनका इस्तेमाल त्रेता युग में भगवान श्री राम ने पुल निर्माण के लिए किया था। यह घटना इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह पत्थर भगवान श्री राम की कृपा और चमत्कार का प्रतीक है।
बांदा विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान के शोधार्थी कृष्ण यादव ने इस तैरते हुए पत्थर के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझाते हुए एक मीडिया चैनल को बताया कि यह पत्थर आग्नेय चट्टान श्रेणी का है। इसका निर्माण तब होता है जब पृथ्वी के अंदर मैग्मा (गर्म पिघला हुआ लावा) ठंडा होकर जम जाता है। इस प्रक्रिया में गैसें बाहर निकलने की कोशिश करती हैं, जिससे पत्थर में छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं। यही कारण है कि इसका घनत्व पानी से भी कम हो जाता है और यह तैरने लगता है।
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कृष्ण यादव बताते हैं कि मृदा विज्ञान में चट्टानों के अध्ययन को शैल विज्ञान कहा जाता है। इस पत्थर को वैज्ञानिक भाषा में प्यूमिस कहते हैं। यह पत्थर रामसेतु के पत्थरों जैसा है। प्यूमिस की खासियत यह है कि इसे पानी में चाहे कितनी भी गहराई में डाल दो, यह डूबेगा नहीं। ऐसे पत्थर भारत में बहुत कम पाए जाते हैं, मुख्यतः ये रामेश्वरम में पाए जाते हैं।