ट्रंप के रुख में नरमी लेकिन सजगता जरूरी (सौ. फाइल फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: व्यापार और तेल आयात को लेकर कुछ महीनों से नाराज चल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को लेकर कुछ नरमी दिखाई है।प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है क्योंकि ट्रंप का रुख कभी अप्रत्याशित रूप से बदल सकता है।ट्रंप की अप्रसन्नता इस वजह से है कि वह भारत को अपनी शर्तों पर झुकाकर व्यापार समझौता नहीं करा पाए।ट्रंप ने बार-बार यह दावा दोहराया कि उन्होंने 2 परमाणु शस्त्र संपन्न देशों भारत और पाकिस्तान का संघर्ष रुकवाया।ट्रंप ने भारत को टैरिफ किंग कहा लेकिन उनके उत्तेजित करनेवाले बयानों पर भारत ने हमेशा संयमित रवैया अपनाया।
ट्रंप अब अपनी उस टिप्पणी से पीछे हट रहे हैं कि भारत और रूस दोनों चीन की गोद में जाकर बैठ गए हैं।वास्तव में भारतीय नेतृत्व अमेरिका व चीन दोनों से अच्छे संबंध रखने का इच्छुक है लेकिन इन दोनों देशों का रवैया अपने से कमजोर अर्थव्यवस्थाओं पर धौंस जमाने का रहा है।यद्यपि ट्रंप ने भारत से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ और रूस से तेल खरीदने की वजह से 25 प्रतिशत जुर्माना, इस तरह 50 फीसदी टैरिफ लगाया है फिर भी वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि अमेरिका के साथ संतुलित, उचित और समानतापूर्ण समझौता करने की दिशा में प्रयास जारी हैं।भारत अपने यहां का डेयरी और कृषि क्षेत्र खोलने के अमेरिकी दबाव के सामने नहीं झुक रहा है क्योंकि इससे भारतीय किसानों के हितों पर बुरा असर पड़ेगा।
एक आपत्ति की वजह यह भी है कि अमेरिका अपने दुधारू मवेशियों को मांस से बने पदार्थ खिलाता है इसलिए शाकाहारियों को एतराज होगा।भारत अपना 99.2 अरब डॉलर का व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन के बाजार में अधिक पैठ हासिल करने की कोशिश कर रहा है।ट्रंप ने भारत के साथ विशेष संबंधों की पुष्टि की है।दोनों लोकतांत्रिक देश एक दूसरे पर काफी हद तक निर्भर रहे हैं।अमेरिका में रहनेवाले भारतीय वहां की आबादी का लगभग 1 प्रतिशत हैं और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में मूल्यवान योगदान दिया है।यह ट्रंप पर निर्भर है कि वह प्रधानमंत्री मोदी व भारत के साथ सहयोगात्मक संबंध रखना चाहते हैं या नहीं।
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दूरगामी नीतियों पर क्षणिक मतभेदों का असर नहीं पड़ना चाहिए।आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर, टेलीकाम व अंतरिक्ष क्षेत्रों में भारत-अमेरिकी सहयोग की व्यापक संभावनाएं हैं।रूस से तेल लेने पर अमेरिका को आपत्ति है लेकिन वह भी तो रूस से कितनी ही वस्तुएं व धातुएं आयात करता है।नई सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने में भारत-अमेरिकी सहयोग जरूरी है।दोनों को अपनी रणनीतिक भागीदारी बढ़ानी होगी।भारतीय सामान पर टैरिफ बढ़ाने से अमेरिकी उपभोक्ता ही अधिक परेशान हो रहे हैं।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा