
ये है विनायक चतुर्थी की व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Margshirsha Vinayak Chaturthi Vrat Katha: आज 24 नवम्बर को मार्गशीर्ष मास की विनायक चतुर्थी मनाई जा रही हैं। विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने दो बार कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर रखा जाता हैं।
हिन्दू मान्यता के अनुसार, वियानक चतुर्थी के दिन जो कोई भी सच्ची श्रद्धा और भाव से बप्पा की अराधना करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। घर में सुख-समृद्धि का वास हमेशा बना रहता हैं। कहा जाता है कि, इस दिन पूजा के समय कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। वरना पूजा का फल नहीं मिलता हैं।
धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, किसी समय में हरिश्चंद्र नाम का राजा हुआ करता था। राजा के राज्य में एक कुम्हार रहा करता था। वो मिट्टी का बर्तन बनाकर अपने परिवार का पालन -पोषण करता था। वो कुम्हार हमेशा समस्या में रहता था। क्योंकि उसके बर्तन हमेशा कच्चे रह जाते थे। इसकी वजह से उसकी आमदनी कम होने लगी, क्योंकि लोग उसके मिट्टी के बर्तन नहीं खरीदते थे।
कुम्हार एक पुजारी से मिला। कुम्हार ने पुजारी को अपनी सारी व्यथा सुनाई। उसकी बात सुनकर पुजारी ने कुम्हार को उपाय बताया। पुजारी ने कुम्हार से कहा कि जब भी तुम मिट्टी के बर्तन पकाओ, तो उनके साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना। कुम्हार ने पुजारी के कहे अनुसार ही किया। जिस दिन कुम्हार ने यह उपाय किया, उस दिन संयोग से विनायक चतुर्थी का व्रत भी था।
कुम्हार ने जिस बालक को आंवा के साथ रखा, उसकी मां उसे खोज रही थी, लेकिन बच्चा उसको नहीं मिला। उसने भगवान गणेश से अपने बच्चे की कुशलता की कामना की। अगले दिन सुबह कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि उसके सभी बर्तन पक गए थे। बच्चा भी आवां में था और सही सलामत था। यह देखकर कुम्हार भयभीत हो गया और राजा के दरबार में पहुंचा।
राजा के दरबार में कुम्हार ने सारी बात बताई। इसके बाद राजा हरिश्चंद्र ने बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया। फिर माता से राजा ने ये पूछा कि वो ये बताए कि उसने ऐसा क्या कि उसके बालक को आंवा में भी कुछ नहीं हुआ।
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यह सुनने के बाद उस बालक की मां ने बताया कि उसने विनायक चतुर्थी का व्रत रखा था और गणेश जी की पूजा की थी। इसके बाद कुम्हार ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। व्रत और पूजन के प्रभाव से उसके भी सारे कष्ट कट गए। इसलिए सनातन धर्म में इस व्रत का महत्व दिया जाता हैं।






