जर्जर स्कूल (फोटो नवभारत)
Wardha News In Hindi: एक तरफ वर्धा जिला परिषद (ZP) के स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ जिले के 190 कक्षाएं जर्जर और असुरक्षित हालत में हैं। यह स्थिति शिक्षा के बुनियादी ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करती है और स्थानीय राजनीति में हलचल मचा दी है। शिक्षा विभाग के अधिकारी और शिक्षक छात्रों को आकर्षित करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इन कक्षाओं की दयनीय हालत कभी भी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार और प्रशासन की लापरवाही बताते हुए जमकर हमला बोला है।
वर्धा जिले में कुल 908 ZP स्कूल हैं, जिनमें कुल 3,246 कक्षाएं हैं। इनमें से 2,606 कक्षाएं अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन 190 कक्षाएं इतनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हैं कि 183 को ध्वस्त करने का प्रस्ताव निर्माण विभाग को भेजा जा चुका है। हालांकि, निर्माण विभाग ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, फिर भी ये कक्षाएं अब तक गिराई नहीं गई हैं। इस धीमी गति पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। एक स्थानीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जब प्रस्ताव पास हो चुका है, तो फिर देरी क्यों हो रही है? क्या प्रशासन किसी हादसे का इंतजार कर रहा है? यह सीधे तौर पर छात्रों की सुरक्षा से खिलवाड़ है।”
बारिश का मौसम इन जर्जर इमारतों के लिए और भी खतरनाक साबित होता है। पानी के रिसाव से इन कक्षाओं की दीवारें और छतें और कमजोर हो जाती हैं, जिससे उनके गिरने का खतरा बढ़ जाता है। शिक्षा विभाग को तुरंत इन कक्षाओं को गिराने के लिए एक विशेष अभियान चलाने की जरूरत है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आगामी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। स्थानीय विधायक और सांसद पर भी इस मुद्दे को लेकर दबाव बढ़ रहा है।
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दूसरी ओर, शिक्षा विभाग ने 49 कक्षाओं की मरम्मत के लिए एक प्रस्ताव जिला योजना समिति को भेजा है। विभाग को उम्मीद है कि इस पर जल्द ही कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। हालांकि, यह मरम्मत कार्य केवल कुछ कक्षाओं तक ही सीमित है, जबकि समस्या कहीं अधिक व्यापक है। विपक्ष का आरोप है कि यह महज एक दिखावा है और सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही है। उन्होंने मांग की है कि सभी जर्जर कक्षाओं को तुरंत दुरुस्त किया जाए और इसके लिए पर्याप्त फंड जारी किया जाए।
इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, जिससे यह स्पष्ट है कि यह केवल एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं बल्कि एक बड़ा राजनीतिक मसला बन चुका है।