सीएम फडणवीस का फैसला सुरक्षित
नागपुर: जनप्रतिनिधि कानून की धारा 81 के अनुसार चुनाव याचिका दायर करते समय याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट में उपस्थित रहना होता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होने का हवाला मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस सहित 5 विधायकों की पैरवी कर रहे वकील ने दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता प्रफुल्ल गुड्धे और अन्य की ओर से हलफनामा प्रस्तुत किया गया।याचिकाकर्ताओं की ओर से हलफनामा में बताया गया कि याचिका दायर करते समय हाई कोर्ट परिसर में ही थे। इस तरह के कई कानूनी पेंच पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सुनवाई खत्म करते हुए फैसला सुरक्षित कर लिया।
बता दें कि चुनाव में गड़बड़ी होने का दावा करते हुए दक्षिण पश्चिम नागपुर के प्रत्याशी रहे प्रफुल्ल गुड्धे ने फडणवीस की जीत को चुनौती दी थी। इसी तरह से राजुरा से कांग्रेस के प्रत्याशी सुभाष धोटे ने देवराव भोंगडे तथा बल्लारपुर से कांग्रेस के प्रत्याशी संतोष सिंह रावत ने सुधीर मुनगंटीवार के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसी तरह से चिमूर से सतीश वारजुरकर ने कीर्तिकुमार भांगडिया और दक्षिण नागपुर से गिरीश पांडव ने मोहन मते के चुनाव को भी चुनौती दी थी।
नहीं मिला सीसीटीवी फुटेज
याचिकाकर्ताओं की ओर से याचिका में बताया गया कि 1 जनवरी 2025 को निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित सम्पूर्ण वीडियो फुटेज, सीसीटीवी फुटेज और फॉर्म 17-सी भाग-1 और भाग-2 तथा अन्य दस्तावेज की आपूर्ति के लिए चुनाव आयोग के पास आवेदन किया गया। 2 अप्रैल 2025 को फिर से चुनाव आयोग को स्मरण पत्र भेजा गया जिसमें दस्तावेजों की आपूर्ति के लिए पुन: अनुरोध किया गया। लेकिन याचिका दायर किए जाने तक किसी भी तरह का जवाब नहीं दिया गया है। याचिकाकर्ताओं ने संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में महाराष्ट्र विधानसभा आम चुनाव-2024 के संचालन से संबंधित सम्पूर्ण वीडियोग्राफी, वीडियो फुटेज, सीसीटीवी फुटेज, नियमों में निहित लागू दिशानिर्देशों की हैंडबुक, प्रावधानों के अनुसार उपलब्ध कराने का आदेश देने का अनुरोध किया। इसी तरह से फॉर्म 17-सी भाग I और भाग II की प्रति उपलब्ध कराने का आदेश भी चुनाव आयोग को देने का अनुरोध कोर्ट से किया गया।
सुरक्षित रखी जाए पूरी जानकारी
याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे वकील का मानना था कि संबंधित विधानसभा क्षेत्रों के संचालन से संबंधित दर्ज पूरी जानकारी को पुस्तिकाओं और नियमों में निहित लागू दिशानिर्देशों और प्रावधानों के अनुसार सुरक्षित रखने का आदेश दिया जाए। अंतरिम राहत के रूप में वर्तमान याचिका के लंबित रहने के दौरान उसमें दर्ज संबंधित दस्तावेजों की पूरी जानकारी सुरक्षित बनाए रखने का आदेश जिला चुनाव अधिकारी को देने का अनुरोध भी किया। उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक यह है कि चुनाव की अधिसूचना से पहले और चुनाव के दिन मतदान के दौरान भी पूरी तरह से कुप्रबंधन था। मशीनों को समय से पहले नहीं बदला गया और फर्जी मतदान सहित अन्य अनियमितताएं पाई गईं और रिपोर्ट की गईं जो बहुत ही संदिग्ध थीं। जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी चुनाव मैनुअल और पुस्तिकाओं में निर्धारित आदेश और प्रक्रिया के विरुद्ध थीं।