नागपुर हिंसा की रिपोर्ट (सौजन्य-एएनआई)
Nagpur Violence: मार्च महीने की 17 तारीख को महल परिसर में हुए दंगे के पूर्व नियोजित होने का दावा भारतीय विचार मंच की तथ्यान्वेषी समिति ने प्रेस-परिषद में किया है। समिति ने कहा कि इस घटना ने न केवल शहर के सामाजिक-धार्मिक सौहार्द्र पर बल्कि नागरिक सुरक्षा-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
धार्मिक और सामाजिक समरसता के शहर के रूप में विख्यात नागपुर में हुई इस घटना का सच जनता के सामने लाने के उद्देश्य से सामाजिक और निष्पक्ष संगठन भारतीय विचार मंच ने पहल करते हुए एक स्वतंत्र तथ्यान्वेषण समिति का गठन किया था और दोनों समुदायों के पीड़ित परिवारों, मुस्लिम संगठनों व बांधवों से भी चर्चा की।
मंच की संयोजक एड. भाग्यश्री दीवान ने बताया कि विस्तृत शोध के बाद समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कब्र की प्रतिकृति और हरे कपड़े को जलाना तो बस बहाना था, दंगे के पीछे और भी कई कारण थे। समिति ने पाया कि देश में हाल की घटनाओं के बारे में मुस्लिम समुदाय में फैलाई गई गलतफहमियों ने इस घटना को काफी हद तक बढ़ावा दिया। दंगा के पूर्व मुस्लिम दुकानदारों द्वारा फुटपाथ पर रखे अपने सैकड़ों वाहनों को दोपहर में ही हटा लिया गया था।
हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर भय पैदा करना और पुलिस पर हमला कर उसका मनोबल गिराना उद्देश्य था। हिंसक भीड़ ने ‘लक्षित’ हमले किए। पुलिस का खुफिया तंत्र असफल रहा। दंगों से निपटने के लिए पुलिस पूरी तरह तैयार नहीं थी। शुरुआत में पुलिस बल के पास हिंसक भीड़ से निपटने और उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं थे।
समिति ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। पुलिस व्यवस्था को सक्षम करने, संवेदनशील बस्तियों व सड़कों पर सीसीटीवी प्रणाली, गश्त व नियंत्रण व्यवस्था मजबूत किया जाना चाहिए। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से नुकसान का मुआवजा वसूली हेतु जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिए। दंगाइयों पर कठोर कानूनी कार्रवाई व गैर कानूनी हथियार रखने वालों की नियमित जांच होनी चाहिए।
दंगों से जुड़े होने का प्रमाण मिलता है तो ऐसे तत्वों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिले। समिति का मानना है कि दंगों के मुख्य आरोपी फहीम खान के अनधिकृत मकान पर बुलडोजर की कार्रवाई उचित थी। नागपुर हिंसा में अन्य आरोपियों के अनधिकृत मकानों पर भी ऐसी ही कार्रवाई होनी चाहिए। क्या दंगा पूर्व नियोजित था, क्या हिंसा की साजिश बहुत पहले से बनाई गई थी, क्या इसके लिए कोई बहाना ढूंढ़ने की कोशिश की गई थी? इन सवालों के जवाब पुलिस जांच से भी मिलने चाहिए।
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समिति का मानना है कि मुस्लिम समुदाय में व्यापक स्तर पर परामर्श की आवश्यकता है। इस संबंध में सरकारी और सामाजिक संस्थाओं के स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। मुस्लिम समुदाय में जागरूकता और कानूनों के पालन का काफी अभाव है उसे दूर करने के प्रयास हों। समिति में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, भारतीय विचार मंच के कुछ पदाधिकारी शामिल थे। समिति ने अपेक्षा जताई है कि उसके द्वारा जुटाई गई जानकारी राज्य सरकार, स्थानीय प्रशासन, न्यायपालिका और नागरिक समाज के लिए उपयोगी होगी।