हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
Gosikhurd Scam: विदर्भ सिंचाई विकास निगम (VIDC) के तहत हुए बहुचर्चित गोसीखुर्द सिंचाई परियोजना घोटाले में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में हाई कोर्ट ने आरोपी सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता सोपान सूर्यवंशी की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि सूर्यवंशी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रथमदृष्टया पर्याप्त सबूत हैं और उन्हें आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता।
इस फैसले के बाद अब सूर्यवंशी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा चलेगा। विशेषत: गोसीखुर्द प्रकल्प में हुए कथित भ्रष्टाचार को लेकर इसके पूर्व 2 अधिकारियों की भी अर्जी खारिज कर दी गई। तीसरी बार लगातार हाई कोर्ट ने राहत देने से साफ इनकार कर दिया है।
याचिकाकर्ता सोपान सूर्यवंशी सेवानिवृत्ति से पहले मुख्य अभियंता और पूर्व-योग्यता समिति के अध्यक्ष थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार सूर्यवंशी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कई अवैध कार्य किए। उन्होंने टेंडर की अनुमानित लागत को 51.09 करोड़ रुपये से अवैध रूप से बढ़ाकर 53.88 करोड़ रुपये कर दिया जिससे 2.79 करोड़ रुपये की अनुचित लागत वृद्धि हुई। यह वृद्धि उन्होंने अपने स्तर पर ही मंजूर कर ली, जबकि इसके लिए जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव की मंजूरी आवश्यक थी।
आरोप है कि उन्होंने पूर्व-योग्यता आवेदनों की जांच करते समय शर्तों में बदलाव को नजरअंदाज किया। ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए एक शर्त में ‘और’ (and) शब्द को ‘या’ (or) में बदल दिया गया जिसे सूर्यवंशी ने समिति के अध्यक्ष होते हुए भी स्वीकार कर लिया। इसके अलावा उन्हें बोलीदाताओं को 20% तक की छूट देने का अधिकार था लेकिन उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर 60% तक की छूट दे दी।
जांच में पाया गया कि सफल ठेकेदार कंपनी द्वारा जमा की गई ‘डीड ऑफ गारंटी’ जाली थी लेकिन इसकी जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके अलावा पार्टनरशिप डीड जैसे आवश्यक दस्तावेजों के बिना ही टेंडर फॉर्म स्वीकार कर लिए गए। यह मामला तब सामने आया जब जनहित याचिकाओं (PIL) के बाद महाराष्ट्र सरकार ने VIDC की सिंचाई परियोजनाओं में हुई अनियमितताओं की खुली जांच का आदेश दिया था।
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सूर्यवंशी ने अपनी डिस्चार्ज याचिका में कई दलीलें दी थीं। उनका कहना था कि चूंकि संबंधित टेंडर बाद में रद्द कर दिया गया था, इसलिए सरकार को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उन्हें एक विभागीय जांच में इन्हीं आरोपों से बरी कर दिया गया है और चूंकि आपराधिक मामलों में सबूतों का मानक ऊंचा होता है, इसलिए उन्हें मामले से मुक्त किया जाना चाहिए।