महाराष्ट्र पर्यटन (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: यह महाराष्ट्र ही नहीं समूचे राष्ट्र के लिए गौरवपूर्ण है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के रायगड़, राजगड़, प्रतापगड़, पन्हाला, शिवनेरी, लोहगड़, साल्हेर, सिंधुदुर्ग, विजयदुर्ग, सुवर्णदुर्ग और खांदेरी जैसे 11 किलों तथा तमिलनाडु के जिंजी किले को यूनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है।स्वराज्य की स्थापना व सुरक्षा के लिए बनाए गए इन किलों की मजबूती दर्शनीय है।छत्रपति ने अनेक पहाड़ी किलों की रक्षा ही नहीं पुनर्निर्माण भी किया था।ये किले उनकी युद्धनीति, शौर्य व दूरदृष्टि के प्रतीक हैं।1664 में अरब सागर में बनाया गया सिंधुदुर्ग किला स्थापत्य का ऐसा अनोखा प्रतीक था कि अंग्रेज और फ्रांसीसी भी उसे देखकर चकित हो गए थे।
यह किला आज भी शान से खड़ा है।‘जाणता राजा’ कहलानेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज का हर किला मराठों के शौर्य का प्रतीक है।उन्होंने क्या नहीं किया? गोला-बारूद व शस्त्र बनाने का कारखाना तैयार किया।उस जमाने में सेनापति कान्होजी आंग्रे के नेतृत्व में नौसेना बनाई और अंग्रेजों व पुर्तगालियों के दांत खट्टे किए।गुरिल्ला युद्ध की प्रणाली विकसित की और मुगलों की बड़ी सेना के छक्के छुड़ा दिए।किसानों की फसलों और महिलाओं के सम्मान की रक्षा करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रधर्म को जगाकर मावलों की सेना खड़ी की तथा पहले बीजापुर और फिर औरंगजेब की अमानुषिक सत्ता को कड़ी चुनौती दी।उन्होंने फारसी-मराठी शब्दकोश भी तैयार करवाया था।सिक्के ढालने की टकसाल भी बनवाई थी।प्रशासन के लिए अष्टप्रधान नियुक्त किए थे।उनके किले सामरिक के अलावा स्थापत्य व सांस्कृतिक महत्व के भी हैं।
विश्व के विभिन्न 20 देशों के प्रस्ताव व समर्थन से यूनेस्को ऐसे ऐतिहासिक व दुर्लभ धरोहरों को मान्यता व संरक्षण उपलब्ध कराता है।जिस प्रकार यूरोप के पुराने किलों व महलों का संरक्षण व मरम्मत शास्त्रीय तरीके से की जाती है वैसी ही संवर्धन की व्यवस्था छत्रपति के इन किलों के लिए भी होगी।यूनेस्को सूची में नाम शामिल हो जाने पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटक इन किलों को देखने आएंगे।किसी भी देश का इतिहास उसके किलों, महलों व अन्य प्राचीन स्मारकों, सिक्कों, शिलालेखों और पुरावस्तु से पहचाना जाता है।मराठा शौर्य व अभिमान के प्रतीक इन किलों की देखभाल की जिम्मेदारी अब तक सरकार व पुरातत्व विभाग की थी लेकिन अब इसे अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानकर यूनेस्को शास्त्रीय पद्धति से इनके संरक्षण और जतन का कार्य करेगा।साथ ही समूचे विश्व में छत्रपति शिवाजी महाराज का शौर्य भी इन किलों के माध्यम से प्रतिध्वनित होगा।
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लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा