केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
नई दिल्ली: केन्द्रीय ग्रह मंत्रालय ने लंबे अरसे से चली आ रही मणिपुरी की हिंसा को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सरकार के ग्रह मंत्रालय की तरफ से आपसी बातचीत के लिए संगठनों को निमंत्रण भेजा गया है जिसे कुकी समुदाय ने स्वीकार कर लिया है। दोनो समुदायों के प्रतिनिधि मंडल को दिल्ली बुलाकर शांति बहाली के सिलसिलेवार कदमों पर चर्चा की जायेगी। अब शनिवार को दोनो संगठनों के प्रतिनिधियों को आमने-सामने बिठाकर पूर्णता स्थाई शांति की बहाली करने की बात की जायेगी।
बता दें कि पिछले साल भी इस तरह की बैठक के प्रयास किये गये थे, लेकिन इसे कुकी समुदाय ने नकार दिया था। इस बार कुकी समुदाय की तरफ से इसको अस्वीकार कर दिया था। इस बार की द्विपक्षीय बैठक को अहम माना जा रहा है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से यह पहली बैठक है जिसमें केन्द्र के वार्ताकार एके मिश्रा कुकी और मैतेयी दोनों संगठनों के प्रमुख प्रतिनिधियों के सामने बातचीत करके स्थाई शांति की बहाली के लिए पूर्ण प्रयास किये जायेगें।
लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद राज्यसभा में देर रात मणिपुर में लगे राष्ट्रपति शासन को मंजूरी देने का सांविधिक संकल्प पेश किया। इसके पक्ष और विपक्ष के नेताओं ने मुद्दे पर अपने-अपने विचार भी व्यक्त किए। उच्च सदन ने इसको तड़के करीब 4 बजे ध्वनिमत के साथ इस संकल्प को पास कर दिया। इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में विपक्ष पर जमकर निशाना भी साधा।
अमित शाह ने राज्यसभा में टीएमसी पर हमला बोलते हुए कहा कि मैं इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति नहीं करना चाहता। केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि मणिपुर के दोनों समुदाय समझेंगे और बातचीत का रास्ता अपनाएंगे। मणिपुर के दोनों समुदायों की अगली बैठक जल्द ही दिल्ली में होने वाली है।
मणिपुर में फरवरी में लगाए राष्ट्रपति शासन पर लोकसभा की मुहर लग चुकी है और अब गुरूवार को इसे राज्यसभा से भी अनुमोदित कर दिया है। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के अनुमोदन का प्रस्ताव पेश करते हुए केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि मणिपुर में स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है और पिछले चार महीने में जातीय हिंसा की एक भी घटना नहीं हुई है।
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अमित शाह ने आगे बताय कि यह गलत नहीं बनाया जाना चाहिए कि राष्ट्रपति शासन इस वजह से लगाया कि हम स्थिति को संभालने में असमर्थ थे। उन्होंने आगे कहा कि 7 साल पहले मणिपुर में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब साल में 225 दिन कर्फ्यू लग रहता था और एनकाउंटर में भी 1500 लोग मारे गए थे। नस्लीय हिंसा और नक्सलवाद दोनों में अंतर है और दोनों से निपटने के तरीके अलग-अलग होते हैं।