पवन सिंह और अमित शाह, (फाइल फोटो)
Pawan Singh Contested Election From Ara Seat: भोजपुरी फिल्म स्टार पवन सिंह की करीब 16 महीने बाद बीजेपी में वापसी हो चुकी है।अभी कुछ महीने पहले ही उन्होंने बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की जमकर तारीफ की थी, यहां तक की उन्हें बड़ा भी बताया था। इस के बाद पवन सिंह के राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संपर्क में होने की चर्चा तेज हो गई थी। इससे पहले ऐसा भी कहा जा रहा था कि वह प्रशांत किशोर की पार्टी से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।
हालांकि, दो महीने पहले आरा के पूर्व सांसद आरके सिंह से मुलाकात से शुरू हुआ गिले-शिकवे दूर करने का सिलसिला अब अमित शाह, जेपी नड्डा और उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात के बाद पूरा हो चुका है। इन मुलाकातों की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया अकाउंट से पोस्ट करते हुए पवन सिंह ने लिखा था कि इन्हें देखकर जातिवादियों के सीने पर सांप लोट रहा होगा।
चुनावी समय में बदली परिस्थितियों और पवन सिंह के तल्ख सुर के बीच ये सवाल भी उठ रहे हैं कि वह आरजेडी के दरवाजे पर भी गए थे, ऐसी चर्चा रही। लेकिन जब चुनाव करीब आए, तो उन्होंने बीजेपी को चुना। आरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए पवन को बीजेपी की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे का मुख्य वजह ये है कि पवन सिंह ने लोकसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ उपेंद्र कुशवाहा जैसे कद्दावर नेता को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था।
लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार अपनी ताकत दिखा चुके पवन सिंह फिल्मी स्टार भी हैं। किसी भी राजनीतिक दल से उनकी बात बन सकती थी या अपने गृह इलाके की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने की स्थिति में वह मुकाबले में होते। फिर उनको आरा से चुनाव लड़ने के लिए बीजेपी की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे जातीय समीकरणों के साथ ही संगठन की शक्ति भी एक वजह बताई जा रही है।
ऐसी चर्चा है कि पवन सिंह के आरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, बीजेपी की ओर से अभी तक अधिकारिक रूप से ऐलान नहीं किया गया है। आरा विधानसभा सीट पर राजपूत, यादव और कोइरी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। अनुमानों के मुताबिक, यहां राजपूत मतदाता की संख्या करीब 35 हजार, यादव मतदाता की संख्या करीब 28 हजार हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और दलित मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। ब्राह्मण बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है और चिराग पासवान, जीतनराम मांझी की पार्टियों के भी गठबंधन में होने से दलित-महादलित के बीच भी एनडीए की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।
आरा विधानसभा सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो इस सीट पर साल 2000 से ही बीजेपी का दबदबा रहा है। आरा सीट से अमरेंद्र प्रताप सिंह पांच बार के विधायक हैं। साल 2015 के चुनाव में अमरेंद्र प्रताप सिंह को आरजेडी के मोहम्मद नवाज आलम ने हरा दिया था। तब आरजेडी और जेडीयू गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे। बीजेपी के इस सीट पर दबदबे को देखते हुए भी पवन सिंह ने यहां से लड़ने का सोचा होगा।
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पवन सिंह को आरा की राजनीति में अवसर दिख रहा है, तो उसके पीछे वाजिब वजहें भी हैं। आरा से पांच बार के विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह पांच बार के विधायक हैं और उनकी उम्र 78 साल हो चुकी है। बीजेपी में 75 साल की उम्र के बाद टिकट ना देने की अघोषित नीति रही है। ऐसे में बीजेपी को भी अमरेंद्र के बाद मजबूत चेहरे की जरूरत आरा में है।