वायरल वीडियो का स्क्रीनग्रैब (सोर्स- सोशल मीडिया)
Assam News: असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार ने एक सीमेंट कंपनी को 3 हजार बीघे जमीन आवंटित कर दी। यह मामला जब हाईकोर्ट पहुंचा तो जज भी सन्न रह गए। मामले की सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि यह कोई मजाक चल रहा है क्या? आपने तो आधा जिला ही एक कंपनी को सौंप दिया।
आगबबूला होते हुए जज संजय कुमार मेधी ने कहा कि ऐसा लगता है कि महाबल सीमेंट्स कंपनी बहुत शक्तिशाली है और उसके प्रभाव के चलते ऐसा फैसला लिया गया कि लगभग आधा ज़िला उसे आवंटित कर दिया गया। पीठ ने कहा कि यह फैसला अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक है।
पीठ ने कहा कि यह कैसा फैसला है? यह मज़ाक है या कुछ और? आप एक ही कंपनी को 3 हज़ार बीघा ज़मीन कैसे आवंटित कर सकते हैं? क्या आपको पता है कि 3000 बीघा में कितनी ज़मीन आती है? यह लगभग आधे ज़िले के बराबर होगी।
A shocked HC judges reacting after he learnt 3000 bighas was allotted to a private company in Assam.
“3000 Bighas! The entire district? What is going on? 3000 Bighas alloted to a private company? 3000 bighas, is this some kind of a joke or what!” pic.twitter.com/cWpxzzlFFW
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) August 18, 2025
पीठ ने असम के दीमा हसाओ ज़िले में ज़मीन आवंटन के मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही। अदालत ने कहा कि जिस जगह ज़मीन आवंटित की गई है वह संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आती है। संविधान में यह प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि स्थानीय आदिवासियों के हितों की रक्षा की जा सके।
अदालत ने कहा कि जो ज़मीन आवंटित की गई है, उसमें दीमा हसाओ ज़िले का उमरांगसो भी शामिल है, जिसे पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है। यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी पाए जाते हैं। इसके अलावा, यह इलाका वन्यजीवों के लिए भी प्रसिद्ध है।
इसके साथ ही, अदालत ने उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद से ज़मीन के दस्तावेज़ जमा करने और यह बताने को कहा है कि वह ज़मीन आवंटन नीति क्या है जिसके तहत यह ज़मीन महाबल सीमेंट्स को दी गई है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।
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दरअसल, पीठ ग्रामीणों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें ग्रामीणों ने उन्हें हटाए जाने का विरोध किया था। वहीं, महाबल सीमेंट्स ने याचिका दायर कर कहा है कि कुछ लोग उसके काम में बाधा डाल रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकने का आदेश दिया जाए।
सीमेंट कंपनी की ओर से पेश वकील जी. गोस्वामी ने कहा कि ज़मीन टेंडर प्रक्रिया के बाद 30 साल के पट्टे पर दी गई है। उन्होंने कहा कि हमें किसी की ज़मीन लेने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हम एक सीमेंट कंपनी हैं और हमें खनन पट्टे के लिए ज़मीन मिली है। वहीं, आदिवासियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि इन लोगों को ज़मीन से नहीं हटाया जाना चाहिए।