पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ प्रमोद महाजन (सोर्स: सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: चाहे अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने की बात हो या लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन या शाइनिंग इंडिया का मंत्र देने की बात, प्रमोद महाजन के जिक्र के बिना सब अधूरा रहता है। कभी अटल-आडवाणी के करीबी रहे प्रमोद महाजन उस समय पार्टी की दूसरी पंक्ति के प्रमुख नेता थे। प्रमोद महाजन को कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्टी का लक्ष्मण कहा था। आज प्रमोद महाजन की पुण्य तिथि है।
प्रमोद महाजन भाजपा के कद्दावर नेता थे। अटल-आडवाणी युग में भाजपा में रणनीति बनाने का काम प्रमोद महाजन का ही था। आज ही के दिन यानी 3 मई 2006 को प्रमोद महाजन का निधन हो गया। उनकी मौत को लेकर आज भी विवाद जारी है। उनकी बेटी पूनम महाजन ने प्रमोद महाजन की हत्या को बड़ी साजिश बताया।
तारीख थी 22 अप्रैल 2006 मुंबई के वर्ली में बीजेपी के दिग्गज नेता प्रमोद महाजन के घर उनसे मिलने उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन आए थे। किसी बात को लेकर दोनों भाइयों में 15 मिनट तक बहस हुई। गुस्से में प्रवीण ने रिवॉल्वर से प्रमोद पर तीन गोलियां दाग दीं। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां 3 मई 2006 को उनकी मौत हो गई।
पिछले साल भाजपा नेता और पूर्व सांसद पूनम महाजन ने 2006 में अपने पिता प्रमोद महाजन की हत्या के पीछे बड़ी साजिश का आरोप लगाया। मीडिया चैनलों को दिए इंटरव्यू में पूनम ने कहा कि “प्रमोद महाजन की हत्या एक बड़ी साजिश थी, जिसे तुच्छ कारणों का हवाला देकर छिपाया गया। यह सच नहीं है। आखिरकार आज या कल सच सामने आ ही जाएगा।
पूनम ने कहा कि शुरुआती तौर पर ऐसा लग रहा है कि प्रवीण ने ट्रिगर दबाया। बंदूक और गोली दोनों उसी व्यक्ति की थी। यह भी संभव है कि उसने जो कपड़े पहने थे, वे भी मेरे पिता ने दिए हों। लेकिन इस कथित धारणा के पीछे कोई मास्टरमाइंड हो सकता है।
प्रमोद महाजन का जन्म 30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (तेलंगाना) में हुआ था। उनके पिता शिक्षक थे। वे राजनीतिक बहसों में हमेशा आगे रहते थे। स्कूल में उन्होंने कई बहसों में जीत हासिल की। इसी दौरान वे आरएसएस से जुड़े। पुणे के रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की डिग्री ली। पत्रकारिता में मौका नहीं मिलने पर उन्होंने एक कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाया।
प्रमोद जब 21-22 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। राजनीति पर उनकी पकड़ तो थी ही, उनमें पत्रकार बनने के गुण भी थे। वे आरएसएस के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ के उप संपादक बन गए। 1974 में उन्होंने कॉलेज में पढ़ाना भी छोड़ दिया। पूरा समय आरएसएस को देने लगे।
आपातकाल के दौरान जब देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा था, तब आरएसएस भी मैदान में था। प्रमोद ने इंदिरा विरोध की कमान संभाली। 1974 में उन्हें संघ प्रचारक बनाया गया। आपातकाल के दौरान उन्होंने आरएसएस के लिए खूब काम किया। उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें बीजेपी में शामिल कर लिया गया।
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1983 से 1985 तक वे पार्टी के अखिल भारतीय सचिव रहे और फिर 1986 में वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने। उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। वे लगातार तीन बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे।