
‘टुकड़ों’ में बंटने जा रहा है पाकिस्तान, फोटो (सो. एआई)
Pakistan Political Crisis: पाकिस्तान में प्रांतों के पुनर्गठन को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है। संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान ने रविवार को ऐलान किया कि देश में छोटे-छोटे नए प्रांत निश्चित तौर पर बनाए जाएंगे। उनका दावा है कि इससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और सरकारी सेवाओं की डिलीवरी में सुधार होगा। मगर कई विशेषज्ञ इस कथित सुधार को देश के लिए नया संकट बताते हैं।
भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद 1947 में पाकिस्तान में पांच प्रांत थे जिसमें ईस्ट बंगाल, वेस्ट पंजाब, सिंध, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (NWFP) और बलूचिस्तान। 1971 के मुक्तियुद्ध के बाद ईस्ट बंगाल स्वतंत्र होकर बांग्लादेश बन गया। इसके बाद NWFP का नाम बदलकर खैबर पख्तूनख्वा रखा गया, जबकि पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान पहले जैसे ही रहे।
अब, जब खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान दोनों ही अलगाववादी आंदोलनों से जूझ रहे हैं पाकिस्तान की ‘हाइब्रिड सरकार’ प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर इन प्रांतों को और छोटे हिस्सों में बांटने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, अलीम खान ने कहा है कि सिंध, पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान को तीन-तीन प्रांतों में बांटा जाएगा। उनका कहना है कि पड़ोसी देशों की तुलना में पाकिस्तान में प्रशासनिक इकाइयों की संख्या बेहद कम है और छोटे प्रांत बेहतर नियंत्रण सुनिश्चित करेंगे। अलीम खान की पार्टी इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी शहबाज शरीफ सरकार का हिस्सा है। लेकिन सबसे बड़ा विरोध सिंध से आ रहा है।
PPP लंबे समय से सिंध के विभाजन का विरोध करती रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने साफ चेतावनी दी थी कि पार्टी किसी भी तरह के विभाजन को स्वीकार नहीं करेगी।
पूर्व नौकरशाह सैयद अख्तर अली शाह के अनुसार, प्रांतों का विभाजन एक संवेदनशील मुद्दा है और इसके लिए गहन संवैधानिक व ऐतिहासिक समीक्षा जरूरी है। वे कहते हैं कि पाकिस्तान ने पहले भी कई प्रशासनिक प्रयोग किए अय्यूब खान का दो-प्रांत मॉडल हो या बेसिक डेमोक्रेसी सिस्टमलेकिन इन प्रयोगों ने स्थितियों को बेहतर नहीं किया।
उनका कहना है कि पाकिस्तान की असल समस्याएं कमजोर संस्थाएं, असमान कानून-व्यवस्था और अप्रभावी स्थानीय शासन हैं। नए प्रांत बनाने से ये समस्याएं कम नहीं होंगी, बल्कि प्रशासनिक असमानता और बढ़ सकती है।
इसी तरह, थिंक टैंक PILDAT के अध्यक्ष अहमद बिलाल महबूब ने भी चेतावनी दी है कि नया ढांचा बनाना बेहद महंगा और राजनीतिक रूप से अस्थिर करने वाला हो सकता है। उन्होंने लिखा कि समाधान बड़े प्रांतों के विभाजन में नहीं, बल्कि स्थानीय निकायों को अधिकार देने में है जो पाकिस्तान में दशकों से उपेक्षित रहे हैं।
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विशेषज्ञों की राय लगभग एक समान है यदि पाकिस्तान अपने प्रशासनिक ढांचे को मजबूत नहीं करता और स्थानीय शासन को प्रभावी नहीं बनाता, तो प्रांतों की संख्या बढ़ाने से देश की मौजूदा चुनौतियां और गंभीर हो सकती हैं। पाकिस्तान जिस समय आंतरिक सुरक्षा संकट और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है, उस समय यह कदम देश के लिए राहत के बजाय नई परेशानियां पैदा कर सकता है।






