जेलेंस्की और ट्रंप, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई तीखी बहस के बाद रूस खुश नजर आ रहा है, जबकि नाटो (NATO) की चिंताएं बढ़ गई हैं। नाटो प्रमुख ने जेलेंस्की को सलाह दी है कि वे जल्द से जल्द अमेरिका के साथ अपने रिश्ते सुधारें, क्योंकि यही सभी के हित में है। दरअसल, व्हाइट हाउस में ट्रंप और जेलेंस्की की गरमागरम बातचीत ने दो बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला अगर अमेरिका की मदद नहीं मिली, तो यूक्रेन रूस के खिलाफ जंग कैसे लड़ेगा? और वहीं, दूसरा नाटो का भविष्य क्या होगा, क्योंकि जेलेंस्की ने रूस से टकराव मोल लेकर नाटो में शामिल होने की राह चुनी थी, जो अब यूक्रेन के अस्तित्व का सवाल बन गई है। हालांकि, ट्रंप ने हाल ही में स्पष्ट कर दिया था कि वे यूक्रेन को नाटो का हिस्सा बनते नहीं देखना चाहते, लेकिन क्या यूरोपीय देशों की भी यही राय है?
नाटो प्रमुख मार्क रूटे ने ओवल ऑफिस में डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति के बीच हुई तीखी बातचीत को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद वह दो बार राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत कर चुके हैं। रूटे का मानना है कि यूक्रेन में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए अमेरिका, यूरोप और यूक्रेन का एकजुट रहना आवश्यक है। साथ ही, उन्होंने जेलेंस्की को सलाह दी कि वे यूक्रेन के लिए ट्रंप के प्रयासों का सम्मान करें। रूटे ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कीव में शांति स्थापित करने और नाटो को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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जेलेंस्की के पास एक विकल्प यह है कि वह अपने पद से इस्तीफा दे दें, जिससे किसी और को यूक्रेन का नेतृत्व करने का मौका मिल सके। यह विकल्प अन्य संभावनाओं की तुलना में सरल लग सकता है, लेकिन इसमें कई जोखिम भी शामिल हैं। जेलेंस्की के सत्ता छोड़ने से मॉस्को को फायदा हो सकता है, क्योंकि इससे अग्रिम मोर्चे पर स्थिति अस्थिर हो सकती है, राजनीतिक दिशा अस्पष्ट हो सकती है, और कीव में सरकार की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं। इसके अलावा, युद्ध के समय एक निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना भी एक बड़ी चुनौती होगी, जिसे संभालना कठिन हो सकता है।
यूक्रेन का भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है और इसके साथ ही उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का भविष्य भी सवालों के घेरे में आ गया है। यूक्रेन से बाहर यूरोप की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धता पर कई संदेह और प्रश्न उठ रहे हैं। सबसे अहम सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, 1949 में पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन द्वारा किए गए उस वादे को निभाएंगे, जिसमें नाटो के किसी सदस्य देश पर हमले को अमेरिका पर हमला माना गया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो का संस्थापक और प्रमुख सदस्य रहा है। नाटो का गठन अमेरिकी विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव था, जो पहले अलग-थलग रहने की नीति पर आधारित थी। इसी नीति के कारण अमेरिका ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में जितना संभव हो, दूर रहने की कोशिश की थी। लेकिन, दोनों मौकों पर उसके नौसैनिक ठिकानों पर हमलों ने उसे युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर कर दिया।
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप का रुख इस मामले में काफी अलग दिखता है। हाल ही में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि नाटो को लेकर अब ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि यही बयान इस पूरे विवाद की शुरुआत का कारण बना।