कॉन्सेप्ट फोटो (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: 17 सितंबर को हिज्बुल्लाह लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेजर में अचानक विस्फोट हो गया। इसमें 3000 से अधिक हिजबुल्लाह लड़ाके घायल हो गए और कई की मौत भी हो गई। इन विस्फोटकों के बाद पूरी दुनिया सदमे में आ गई थी। रिपोर्ट्स में कहा गया था कि इन हमलों के पीछे इजरायल का हाथ है। लेकिन इजरायल ने अभी तक इस बात को स्वीकार नहीं किया है। इस बीच अब वॉशिंगटन पोस्ट ने इस पेजर हमले को लेकर बड़ा खुलासा किया है।
इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। हिज्बुल्लाह लड़ाके एक-दूसरे से बात करने के लिए पेजर का इस्तेमाल करते थे। वे इसका इस्तेमाल इसलिए करते थे क्योंकि इसे हैक नहीं किया जा सकता था। वहीं इजरायल ने इसे इसलिए निशाना बनाया क्योंकि ज्यादातर लड़ाके इस डिवाइस को अपने पास रखते हैं। ऐसे में विस्फोट के बाद उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान होता।
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वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक पेजर ऑपरेशन का आइडिया 2022 में आया था। हमास के 7 अक्टूबर के हमले से एक साल से भी ज्यादा समय पहले इस योजना के कुछ हिस्सों पर अमल शुरू हो गया था। हिज्बुल्लाह को 2015 के बाद ही हैक-प्रूफ इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क की तलाश थी। ऐसे में 2015 में मोसाद ने लेबनान में वॉकी-टॉकी भेजने शुरू कर दिए। अधिकारियों ने आगे बताया कि हिज्बुल्लाह को वॉकी-टॉकी इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा था। इसके लिए इजरायल ने तैयारी कर ली थी।
हिज्बुल्लाह को पता था कि इजरायल और अमेरिका जैसे देश पेजर नहीं बनाते हैं। इसीलिए उन्होंने ताइवानी ब्रांड के अपोलो पेजर खरीदे। यह कंपनी इजरायल से जुड़ी भी नहीं थी। अधिकारियों ने बताया कि ताइवानी कंपनी को इस योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
इसके बाद हिज्बुल्लाह ने पेजर खरीदने के लिए मार्केटिंग अधिकारी की मदद ली। उसने अपोलो ब्रांड के पेजर बेचने का लाइसेंस लिया था। इन दोनों के बीच यह डील 2023 में हुई थी। उसने ही हिज्बुल्लाह को AR924 पेजर खरीदने के लिए राजी किया था। इन पेजर की बैटरियों में विस्फोटक छिपाए गए थे।
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इस हमले के असर से कई इजरायली अधिकारी भी अनजान थे। इजराइल ने यह फैसला हिज्बुल्लाह से बढ़ते खतरे को देखते हुए लिया था। इसके बाद जैसे ही कोडित संदेश भेजा गया और पेजर फट गया। जिसके बाद हिज्बुल्लाह के 300 से ज्यादा लड़ाके मारे गए थे।