(कॉन्सेप्ट फोटो)
नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका, रूस से लेकर यूरोप के सभी बड़े देश खुलकर भारत का समर्थन करते नजर आए। भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 का उल्लंघन करने यानी संतुलित कार्रवाई के बजाय सीधे सैन्य हमले की राग अलापने के बावजूद पाकिस्तान मुस्लिम देशों का समर्थन भी हासिल नहीं कर सका। पूरी दुनिया में 50 से ज्यादा मुस्लिम देश हैं लेकिन तुर्किये और अजरबैजान के अलावा कोई भी पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं दिखना चाहता था। अब जब सीजफायर हो गया है तो सवाल यह है कि आखिर सिर्फ ये दो देश ही पाकिस्तान का समर्थन क्यों कर रहे थे?
विशेषज्ञों के अनुसार, निहित स्वार्थ मे उलझे कुछ देशों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी मुस्लिम देशों को अब पाकिस्तान की हकीकत पता चल गई है कि वह मजहब के नाम पर आतंकवादी संगठनाें और गतिविधियों को पालपोस रहा है। साथ ही इसका इस्तेमाल भारत व अन्य पड़ोसी देशों में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कर रहा है।
मुस्लिम देशों का रवैया भारत-पाकिस्तान तनाव को धार्मिक चश्मे से देखने के बजाय कूटनीतिक और आर्थिक नजरिए पर केंद्रित रहा। यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका था क्योंकि इस्लामाबाद लंबे समय से खुद को दक्षिण एशिया में इस्लाम के झंडाबरदार के रूप में पेश करता रहा है। यह अलग बात है कि भारत में मुसलमानों की संख्या कम नहीं है। दरअसल, दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी यहीं है।
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे देश पाकिस्तान को खूब पैसा देते रहे हैं लेकिन तेजी से बदल रही भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच दोनों देश पहले से ही पाकिस्तान से दूर होते और भारत के करीब आते दिख रहे हैं। आपको याद होगा कि 22 अप्रैल को जब पहलगाम में आतंकी हमला हुआ था उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दौरे पर ही थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस्लामिक दुनिया को यह एहसास हो गया है कि पाकिस्तान न सिर्फ कश्मीर मुद्दे को बातचीत से सुलझाना नहीं चाहता बल्कि पहलगाम जैसे जघन्य हमलों की साजिश रचने में भी लगा हुआ है। पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों ही आवाम के बीच अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कश्मीर मसले का राग अलापते रहते हैं।
तुर्किये के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन लंबे समय से ऑटोमन साम्राज्य की तर्ज पर पूरे इस्लामी दुनिया का खलीफा बनकर अपने देश के प्राचीन रुतबे को बहाल करना चाहते हैं। अर्दोआन की इस महत्वाकांक्षा को हमेशा से ही पाकिस्तानी सरकार और सेना का समर्थन मिलता रहा है। यही वजह है कि तुर्किये ने पाकिस्तान को ड्रोन और अन्य उपकरण दिए।
विश्लेषकों के अनुसार, तुर्किये इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। 57 सदस्यीय संगठन में सऊदी अरब और ईरान का दबदबा है और तुर्किये एक इस्लामी राष्ट्र का समर्थन करने के नाम पर अपना कद और लोकप्रियता को बढ़ाना चाहता है।
अजरबैजान की स्थिति थोड़ी सी अलग है। वह पाकिस्तान का सीधे समर्थन तो नहीं करता लेकिन भारत विरोधी रुख़ रखने वाले तुर्किये के साथ उसके तानाशाही, आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक गठबंधन के साथ दिखाई देता है। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव लगातार भारत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते रहे हैं।
पाकिस्तान के साथ अजरबैजान के रिश्ते सिर्फ़ 2020 में आर्मीनिया के खिलाफ युद्ध के दौरान ही विकसित हुए थे जब मोहम्मद ने बाकू के फ़्रैंक का समर्थन किया था और उन्हें सैन्य समर्थन का भरोसा भी दिलाया था।