
खाप पंचायत का बड़ा फैसला समाज सुधार के लिए बनाए नियम (सोर्स-सोशल मीडिया)
Khap Ban On Half Pants: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में खाप चौधरियों की एक विशाल पंचायत ने समाज सुधार के नाम पर कई कड़े और हैरान करने वाले फैसले सुनाए हैं। इस पंचायत में युवाओं के पहनावे से लेकर तकनीक के इस्तेमाल और शादी समारोहों के तौर-तरीकों को लेकर नए नियम तय किए गए हैं।
खाप का मानना है कि आधुनिकता के दौर में सामाजिक मर्यादाएं खत्म हो रही हैं, जिन्हें बचाने के लिए कड़े कदम उठाना अनिवार्य हो गया है। इन फैसलों ने स्थानीय स्तर पर नई बहस छेड़ दी है क्योंकि इसमें केवल लड़कियों पर ही नहीं बल्कि लड़कों पर भी कई पाबंदियां लगाई गई हैं।
बागपत की इस देशखाप पंचायत में सबसे ज्यादा चर्चा लड़कों के पहनावे को लेकर रही। खाप चौधरी ब्रजपाल सिंह धामा ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया है कि अब लड़के सार्वजनिक स्थानों या घरों में हाफ पैंट (बरमूडा) पहनकर नहीं घूम सकेंगे।
खाप का तर्क है कि इस तरह के कपड़े पहनकर बहू-बेटियों के सामने जाना अशोभनीय है और इससे समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही, 18 वर्ष से कम उम्र के किशोरों को स्मार्टफोन न देने का फरमान भी जारी किया गया है। खाप के अनुसार, मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग युवाओं को संस्कारों से दूर ले जा रहा है और उन्हें गलत दिशा में धकेल रहा है।
शादियों के बदलते स्वरूप पर चिंता व्यक्त करते हुए पंचायत ने मैरिज होम में विवाह करने का विरोध किया है। खाप का कहना है कि शादियां गांव और घरों के पारंपरिक वातावरण में ही होनी चाहिए क्योंकि मैरिज होम में होने वाले संबंध अक्सर जल्दी टूट जाते हैं।
सामाजिक रिश्तों की मजबूती के लिए पुरानी परंपराओं को अपनाना जरूरी बताया गया है। इसके अलावा, शादियों में होने वाली भारी फिजूलखर्ची को रोकने के लिए एक व्यावहारिक निर्णय लिया गया है। अब व्हॉट्सऐप (WhatsApp) पर भेजे गए डिजिटल निमंत्रण पत्र को ही आधिकारिक बुलावा माना जाएगा ताकि छपाई और वितरण के अनावश्यक खर्च से बचा जा सके।
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चौधरी ब्रजपाल सिंह धामा ने घोषणा की है कि इन नियमों को केवल बागपत तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में अन्य खापों के साथ मिलकर एक व्यापक अभियान चलाया जाएगा।
उन्होंने राजस्थान में हाल ही में लिए गए इसी तरह के सामाजिक फैसलों का समर्थन करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति की ओर लौटना होगा। खाप का मुख्य उद्देश्य युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ना और समाज में अनुशासन बनाए रखना है। हालांकि, आधुनिक समाज में इन पाबंदियों को लेकर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।






