
AI को लेकर आया कुछ नया। (सौ. AI)
Brain Like Computer: टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक नया अध्याय जुड़ गया है। टेक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटर प्रोटोटाइप विकसित किया है, जो बेहद कम प्रशिक्षण के जरिये पैटर्न पहचानने और भविष्यवाणी करने में सक्षम है। यह प्रणाली पारंपरिक कंप्यूटरों से कई गुना तेज और कुशल है, क्योंकि इसमें मेमोरी और प्रोसेसिंग यूनिट को एकीकृत किया गया है ठीक उसी तरह जैसे मानव मस्तिष्क काम करता है।
आज के पारंपरिक कंप्यूटर और ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) अलग-अलग तरीके से काम करते हैं एक हिस्सा डेटा को स्टोर करता है जबकि दूसरा उसे प्रोसेस करता है। इसी कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिस्टम्स को विशाल मात्रा में लेबल किए गए डेटा और अरबों प्रशिक्षण गणनाओं की जरूरत पड़ती है। इन प्रक्रियाओं पर कभी-कभी मिलियन डॉलर तक का खर्च आता है। लेकिन नया न्यूरोमॉर्फिक मॉडल इस पूरी प्रक्रिया को सरल, सस्ता और तेज बना सकता है।
इस तकनीक की खासियत यह है कि यह मानव मस्तिष्क की तरह सीखती है। वैज्ञानिकों ने इसे Hebb’s Law के सिद्धांत पर विकसित किया है “न्यूरॉन्स जो साथ सक्रिय होते हैं, वे एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।” यानी जब एक कृत्रिम न्यूरॉन दूसरे को सक्रिय करता है, तो उनके बीच की कड़ी मजबूत होती जाती है। यही प्रक्रिया समय के साथ कंप्यूटर को सीखने में मदद करती है।
इस शोध की सबसे अनोखी विशेषता है मैग्नेटिक टनल जंक्शन (MTJ) का उपयोग। ये सूक्ष्म चुंबकीय उपकरण दो चुंबकीय परतों और एक इन्सुलेटिंग लेयर से बने होते हैं। जब दोनों परतों की दिशा समान होती है, तो इलेक्ट्रॉन आसानी से गुजरते हैं, लेकिन विपरीत दिशा में कठिनाई से। इन्हीं MTJ को जोड़कर वैज्ञानिकों ने ऐसा नेटवर्क तैयार किया है, जो मस्तिष्क की तरह पैटर्न पहचानने और सीखने की क्षमता रखता है।
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वैज्ञानिकों का कहना है, “हमारा उद्देश्य ऐसे कंप्यूटर बनाना है, जो खुद सीखें, जैसे मनुष्य अनुभव से सीखता है।” न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटरों की सबसे बड़ी ताकत यह है कि ये बहुत कम ऊर्जा में अधिक कार्यक्षमता प्रदान करते हैं। जहां पारंपरिक AI सिस्टम भारी डाटा सेंटर और बिजली पर निर्भर हैं, वहीं ये नए कंप्यूटर न्यूनतम संसाधनों में सीख सकते हैं।
यह तकनीक उस भविष्य की ओर इशारा करती है, जहां कंप्यूटर सिर्फ आदेश नहीं मानेंगे, बल्कि अपने अनुभवों से सोचना और समझना भी सीखेंगे। अगर यह दिशा सही साबित होती है, तो आने वाले वर्षों में हमारे मोबाइल, लैपटॉप और स्मार्ट डिवाइस भी “सोचने” की क्षमता से लैस हो सकते हैं।






