
एआई टूल को ईएनई प्रेडिक्टर (सौ.सोशल मीडिया)
AI Tool For Cancer: कैंसर के मामले लगातार बढ़ते जा रहे है तो वहीं पर इस बीमारी का इलाज भी खोजा जा रहा है। सिर और गर्दन के कैंसर से जूझ रहे मरीजों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक नया टूल भविष्य के इलाज और बीमारी के परिणामों का अधिक सटीक आकलन करने में मददगार साबित हो रहा है। इस तकनीक की मदद से डॉक्टर यह बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं कि किसी मरीज में कैंसर का इलाज कितना प्रभावी हो सकता है और आगे चलकर जोखिम कितना रहेगा।
आपको बताते चलें कि, डाना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट और मैस जनरल ब्रिघम द्वारा विकसित इस एआई टूल को ईएनई प्रेडिक्टर (ENE Predictor) नाम दिया गया है। यह खासतौर पर ऑरोफैरिंजियल कैंसर के लिए तैयार किया गया है, जो सिर और गले के हिस्से में होने वाला कैंसर है। यह टूल यह अनुमान लगाता है कि कैंसर लिम्फ नोड्स से बाहर फैलने की कितनी संभावना है, जिसे मेडिकल भाषा में एक्स्ट्रानोडल एक्सटेंशन (ENE) कहा जाता है। ईएनई की संख्या मरीज की प्रोग्नोसिस यानी भविष्य की स्थिति तय करने में बेहद अहम मानी जाती है।
मैस जनरल ब्रिघम के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन मेडिसिन (AIM) प्रोग्राम के वरिष्ठ लेखक बेंजामिन कान के अनुसार, यह टूल यह पहचानने में सक्षम है कि कौन सा मरीज किस तरह के इलाज से सबसे ज्यादा लाभ उठा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके जरिए यह तय किया जा सकता है कि किसी मरीज को इम्यूनोथेरेपी या अतिरिक्त कीमोथेरेपी की जरूरत है या फिर केवल सर्जरी ही पर्याप्त होगी।
ऑरोफैरिंजियल कैंसर का इलाज अक्सर जटिल और चुनौतीपूर्ण होता है। इसमें सर्जरी, रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी जैसे उपचार शामिल होते हैं, जिनके गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इनमें निगलने में परेशानी, बोलने में दिक्कत और अत्यधिक थकान जैसी समस्याएं आम हैं। एआई टूल की मदद से मरीजों को पहले ही यह जानकारी मिल जाती है कि उन्हें कितना आक्रामक इलाज चाहिए। इससे अनावश्यक इलाज और उसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है और उपचार को ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सकता है।
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यह एआई टूल सीटी स्कैन (CT Scan) की इमेज का विश्लेषण करता है। एआई मॉडल इन इमेज के आधार पर ईएनई वाले लिम्फ नोड्स की संख्या का अनुमान लगाता है। पहले ईएनई का पता लगाने के लिए सर्जरी के जरिए लिम्फ नोड्स निकालकर जांच करनी पड़ती थी, लेकिन यह नया तरीका पूरी तरह नॉन-इन्वेसिव है, यानी बिना किसी चीर-फाड़ के ही जानकारी दे देता है। इसमें उम्र और ट्यूमर के आकार जैसे क्लिनिकल रिस्क फैक्टर्स को जोड़कर नतीजों को और ज्यादा सटीक बनाया जा सकता है।
इस टूल को 1,733 मरीजों पर परखा गया, जहां इसने उन मरीजों की सही पहचान की जिनमें कैंसर ज्यादा फैलने और सर्वाइवल कम होने का खतरा था। अध्ययन में पाया गया कि यह पारंपरिक प्रोग्नोसिस मॉडल्स की तुलना में कहीं ज्यादा सटीक है, खासकर सर्वाइवल और बीमारी के आगे बढ़ने की भविष्यवाणी में।
यह शोध जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एआई टूल ऑरोफैरिंजियल कैंसर के लिए एक नया और शक्तिशाली प्रोग्नोस्टिक बायोमार्कर साबित हो सकता है, जो भविष्य में कैंसर स्टेजिंग और ट्रीटमेंट प्लानिंग को और बेहतर बनाएगा।
(आईएएनएस के अनुसार)






