परीक्षा हाल में जनेऊ की अनुमति नहीं (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, कर्नाटक के बीदर जिले में सीईटी परीक्षा हाल में विद्यार्थियों को जनेऊ उतार कर परीक्षा देने को बाध्य किया गया. इस पर आपकी क्या राय है?’ हमने कहा, ‘परीक्षा किसी युद्ध से कम नहीं होती. जनेऊ पहनकर रणसंग्राम में नहीं जाते. यह पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठान तक ठीक है. मिलिट्री ट्रेनिंग में भी जनेऊ नहीं चलता।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जनेऊ का मुद्दा परंपरा और आस्था से जुड़ा हुआ है। शास्त्रों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को जनेऊ पहनने का अधिकार दिया है। जब बच्चा गुरुकुल में पढ़ने जाता था तो 5 वर्ष की आयु में उसका उपनयन संस्कार कराते हुए जनेऊ पहनाया जाता था और गुरू उसके कान में गायत्री मंत्र फूंकता था. उसे संध्यावंदन करना सिखाया जाता था. 25 वर्ष की आयु तक ब्रम्हचर्य का पालन करने को कहा जाता था।’
हमने कहा, ‘समय बदल गया है. अब बच्चे गुरुकुल में नहीं बल्कि कान्वेंट में जाते है और इंग्लिश मीडियम से पढ़ते हैं. खान-पान भी बिगड़ गया है. जनेऊधारी भी होटल में जूता पहनकर खाना खाते हैं। गायत्री मंत्र जपने की उन्हें फुरसत नहीं है। श्मशान से लौट कर आने के बाद जनेऊ बदलना भूल जाते है। टॉयलेट जाते समय कान पर जनेऊ नहीं चढ़ाते. टूटा जनेऊ नहीं बदलते. ऐसे में यज्ञोपवीत की शुद्धता कैसे रहेगी? जनेऊ से अनेक नियम जुड़े हैं. जनेऊ के 3 धागे सत्य, शील व सदाचरण के प्रतीक है. झूठ बोलना, दुश्चरित्र होना और भ्रष्टाचार या दुराचार करना हो तो जनेऊ बिल्कुल नहीं पहनना चाहिए।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, परीक्षा केंद्र के अधिकारियों का कहना था कि विद्यार्थी जनेऊ के धागे से खुद को नुकसान पहुंचा सकता है. कहीं पेपर बिगड़ने पर गले में फांसी न लगा ले।’ हमने कहा, ‘यह बेवकूफी की बात है. फांसी रस्सी से लगती है, कच्चे धागे से बने जनेऊ से नहीं. विद्यार्थी भी अड़ा रहा और जनेऊ न उतराते हुए गणित का पेपर दिए बगैर घर लौट गया. यह उसकी गलती थी। वह परीक्षा केंद्र में जनेऊ उतारने के बाद घर जाकर नया जनेऊ धारण कर सकता था. हिंदू धर्म में कर्मबंधन से मुक्त होने के लिए संन्यासी को शिखा (चोटी) और सूत्र (जनेऊ) त्याग देना पड़ता है।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा