सावन का महीना (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, सावन का महीना बड़ा सुहावन, मनभावन और पावन है।कितने ही आस्थावान लोग शिवमंदिर में दर्शन करने जाते हैं और सावन सोमवार का व्रत करते हैं।सावन में बारिश की झड़ी लग जाती है और प्रकृति में बहार नजर आती है।फिर भी कुछ लोगों पर सावन का असर नहीं होता।उनके बारे में कहा जाता है- ना सावन सूखे, ना भादों हरे! ये लोग हमेशा एक समान ही रहते हैं.’ हमने कहा, ‘खेती-किसानी और ग्रामीण जीवन का सावन से गहरा संबंध है।पहले महिलाएं सावन में झूला झूला करती थीं।
आम या नीम के वृक्ष की मोटी डाल से गांव में झूला बांधा जाता था।सावन में नागपंचमी, राखी जैसे त्यौहार आते हैं।खेतों में बुआई का काम चलता है।आपने फिल्मी गीत सुना होगा- बदरा छाए कि मेले लग गए हाय, आया सावन झूम के!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, कोई भी महीना शांति से चुपचाप आ जाता है लेकिन यह सावन झूम कर क्यों आता है?’ हमने कहा, ‘सावन में एक नशा सा रहता है इसलिए वह झूमता है।हवा में हिलती वृक्षों की डालियां को देखो।बादल का गरजना, बिजली का चमकना, बारिश की बूंदें सावन का संकेत हैं।महाकवि कालिदास ने पर्वत पर घुमड़ते काले बादलों को देखकर ‘मेघदूत’ नामक महाकाव्य लिखा था जिसमें एक विरही यक्ष अपनी प्रेमिका को बादल के जरिए प्रेम संदेश भेजता है।उस जमाने में मोबाइल पर मैसेज भेजने या चैट करने की सुविधा नहीं थी.’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हमें फिल्म ‘मिलन’ का सुनील दत्त और नूतन पर फिल्माया गया गीत याद आ रहा है- सावन का महीना, पवन करे शोर, जियरा रे झूमे ऐसे जैसे बन मा नाचे मोर! एक अन्य गीत था- तुम्हें गीतों में ढालूंगा सावन को आने दो!’ हमने कहा, ‘सावन को आने के लिए किसी की परमिशन नहीं लगती।अषाढ़ का महीना खत्म होते ही सावन आ धमकता है और नायिका गाने लगती है- बरसें बुंदिया सावन की, सावन की मनभावन की! फिल्म अमर प्रेम का गीत आपको याद होगा- चिनगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए, सावन जो आग लगाए, उसे कौन बुझाए!’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा