निर्मला सीतारमण (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विश्व बैंक से आग्रह किया है कि वह उन देशों को सहयोग दे जो तेजी से हो रहे तकनीकी परिवर्तनों के दौर में बढ़ती बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। समूचे विश्व को रोजगार उत्पन्न करने की दिशा में संयुक्त रूप से काम करना चाहिए। यह समस्या सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक मुद्दा बन गई है। स्थिति विस्फोटक बन जाए, इसके पहले इसका हल निकालना जरूरी है।
कोई भी देश अकेले इस समस्या का समाधान नहीं खोज सकता। उनके पास इतनी आर्थिक शक्ति या संसाधन नहीं हैं। मानव समाज में रोजगार निर्माण एक निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज के संदर्भ में कहा था कि परंपरागत उद्योग परिवारों को रोजगार देते हैं। गांव के किसान, कुम्हार, बढ़ई, लोहार, दुग्ध व्यवसाय में लगे लोग, मिस्त्री, घर बनाने का काम करनेवाले मिलकर गांव की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बना सकते है।
यह उस जमाने की बात थी जब शहरीकरण की हवा नहीं चली थी। आज गांव भी पहले जैसे नहीं रह गए। शिक्षित बेरोजगारों की काफी बड़ी तादाद है लेकिन वे सभी कुशल नहीं कहे जा सकते। उन्हें रोजगार प्रशिक्षण की आवश्यकता है। तकनीक में निरंतर होते बदलाव से यह जरूरी हो गया कि जो भी युवा तकनीक से कदम मिलाकर चलेगा, उसे रोजगार मिलेगा। उद्योगों की शिकायत है कि उन्हें काम करने के लिए ‘रेडी हैंड’ नहीं मिलते।
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शिक्षा संस्थाओं को अपना पाठ्यक्रम उद्योगों की जरूरतों को देखते हुए बनाना चाहिए। अब तो छोटे-मोटे कामों में भी टेक्नोलॉजी ने प्रवेश कर लिया है। इससे लोगों का रोजगार छिन गया है। जिन उद्योगों में एक आदमी एक मशीन चलाता था वहां एक ही व्यक्ति 4 मशीन एक साथ संचालित करने लगा है आटोमेशन बढ़ता जा रहा है। आशंका है कि आईटी का व्यापक प्रचलन होने से रोजगार और भी कम हो जाएंगे।
इसलिए भावी कार्यबल को हुनर का स्तर बढ़ाना होगा। विकास का पश्चिमी मॉडल सारी दुनिया ने स्वीकार कर लिया है जिससे पीछे नहीं हटा जा सकता। जीवनशैली और सोचने के नजरिए में भी बदलाव आ गया है। इसलिए समय के साथ ही चलना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यथोचित बदलाव लाना समय की मांग है।
भारत जैसे बड़ी आबादी के देश में सूझबूझ के साथ रोजगार पैदा करने की जरूरत है। इसके लिए छोटे व मध्यम उद्योगों का जाल बिछाना होगा तथा स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन देना होगा। मुफ्तखोरी की योजनाएं परिश्रम को हतोत्साहित करती हैं और सरकारी खजाने पर व्यर्थ का भार डालती हैं। ऐसी योजनाएं केवल जरूरतमंदों तक सीमित रहनी चाहिए। निजी व सार्वजनिक उद्योग रोजगार सृजन पर बल दें क्योंकि बेरोजगारी हताशा और अपराध को जन्म देती है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा