(डिजाइन फोटो)
कजान में 22 अक्टूबर से 16वां ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन शुरू हो रहा है, जिसमें भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी भी गए हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि ब्रिक्स पश्चिमी प्रतिबंधों से मुक्त ‘स्विफ्ट’ जैसी सीमा-पार भुगतान प्रणाली की संभावनाएं तलाश रहा है।
अगर ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाएं, जिन्हें दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं माना जाता है, अपना एक वैकल्पिक स्विफ्ट विकसित कर लें तो वैश्विक कारोबार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को खत्म किया जा सकता है।
रूस के राष्ट्रपति का सुझाव है कि ब्रिक्स समूह के देशों को आपसी भुगतान हेतु अपनी ‘राष्ट्रीय डिजिटल मुद्राओं’ के इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए। पुतिन ब्रिक्स देशों को अपनी राष्ट्रीय डिजिटल मुद्राओं के इस्तेमाल को इसलिए प्रोत्साहित कर रहे हैं जो पारम्परिक मुद्राओं के मुकाबले इस्तेमाल में किफायती साबित होती हैं।
डिजिटल मुद्राओं के कई रूप हैं, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) और इलेक्ट्रॉनिक मनी (ई-मनी)। जहां तक क्रिप्टोकरेंसी की बात है तो कुछ देशों में तो इसकी स्वीकार्यता है मसलन जापान, स्विट्जरलैंड और सिंगापुर ने क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग को अपनी वित्तीय प्रणाली में शामिल कर लिया है।
इन देशों में क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी मान्यता भी दी गई है। इसी तरह अमेरिका और यूरोपीय संघ में भी क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता दी है। लेकिन इन सभी देशों के बीच आपसी व्यापार में क्रिप्टोकरेंसी को बहुत सीमित लगभग टेस्ट के स्तर पर ही उपयोग हो रहा है। जापान की कोई राष्ट्रीय क्रिप्टोकरेंसी नहीं है, लेकिन मोनाकॉइन या मोना नाम से एक क्रिप्टोकरेंसी है, जिसका इस्तेमाल ही मुख्य रूप से जापान में किया जाता है उस पर भी इन्होंने बहुत कड़े नियम लागू किए हैं।
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इसलिए ब्रिक्स देशों के बीच जिस डिजिटल करेंसी में आपसी व्यापार की कल्पना की जा सकती है, उसमें क्रिप्टो तो नहीं ही हो सकती। भारत और चीन साफ़ तौर पर क्रिप्टोकरेंसी के प्रति सख्त रुख अपनाते हैं। चीन ने क्रिप्टोकरेंसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि भारत में इस पर काफी नियम लागू हैं, हालांकि पूर्ण प्रतिबंध यहां भी नहीं है।
अब मुख्यतः बचती है सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी सीबीडीसी। सवाल है क्या सीबीडीसी के जरिये ब्रिक्स देश आपसी व्यापार कर सकते हैं? सीबीडीसी वह डिजिटल मुद्रा होती है, जिसे किसी देश के सेंट्रल बैंक द्वारा जारी किया जाता है और नियंत्रित भी किया जाता है। इसका उद्देश्य डिजिटल भुगतान को अधिक सुरक्षित, तेज और सस्ता बनाना होता है।
ब्रिक्स देशों के बीच सीबीडीसी का उपयोग करने के कई फायदे हो सकते हैं- जैसे कि आपसी व्यापार लेन-देन में बिचौलियों को हटाना, मुद्रा विनिमय लागत को कम करना और सीमा-पार भुगतान को तेज करना। ब्रिक्स देश कई वर्षों से आपसी व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, इसलिए यह सबसे उपयुक्त विकल्प हो सकता है।
चीन और रूस तो पहले से ही ऐसा कर रहे हैं। चीन की डिजिटल मुद्रा युआन (ई-सीएनवाई) और रूस की डिजिटल रूबल के बीच आपसी कारोबार काफी आगे बढ़ चुका है। भारत अपनी डिजिटल मुद्रा ‘ई-रुपी’ का उपयोग मुख्य रूप से देश के भीतर ही करता है वह भी बहुत सीमित पैमाने पर। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमने अभी तक किसी देश के साथ सीधे डिजिटल रुपये के माध्यम से कारोबार शुरू नहीं किया।
हम अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी ‘ई-रूपी’ के विकास और विस्तार की योजना बना रहे हैं है। यह योजना अभी केवल कुछ बड़े बैंकों और उपयोगकर्ताओं तक सीमित है। अभी तक इसका सीमा-पार व्यापार या अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में कोई उपयोग नहीं किया गया है। मगर इसके बारे में सोचा जा रहा है क्योंकि इसके कई फायदे साफ तौर पर दिख रहे हैं।
सबसे पहले तो इससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी। चूंकि अभी तक अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है, इसलिए वैश्विक कारोबार में अमेरिकी वित्तीय प्रणाली का वर्चस्व बना रहता है। अगर ब्रिक्स देश अपनी डिजिटल मुद्राओं यानी सीबीडीसी में आपसी कारोबार शुरू करते हैं तो इनकी आर्थिक संप्रभुता मजबूत होगी। साथ ही यह भुगतान तेज और सस्ता होगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा