रूस से तेल की डील बनी बड़ी वजह, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
India Russia Relation: G7 देशों ने रूसी तेल की बढ़ती खरीद पर कड़ा कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। बताया जा रहा है कि यह समूह उन देशों पर कार्रवाई करने की योजना बना रहा है, जो लगातार रूस से तेल आयात बढ़ा रहे हैं। इसमें भारत और चीन सबसे बड़े खरीदारों के रूप में शामिल हैं। वहीं, भारत का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ सीधे तौर पर उसे निशाना बना रहे हैं।
बुधवार को जी7 देशों ने साफ किया कि रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए मिलकर कदम उठाए जाएंगे। समूह के वित्त मंत्रियों ने कहा कि यूक्रेन पर हमले के चलते रूस की आय घटाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। बैठक में टैरिफ लगाने, आयात-निर्यात पर रोक जैसे व्यापारिक कदमों पर भी चर्चा हुई। साझा बयान में यह भी कहा गया कि उन देशों को निशाने पर लिया जाएगा, जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूसी तेल की खरीद बढ़ा रहे हैं।
सितंबर में अमेरिका ने जी-7 देशों से अपील की कि वे रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर शुल्क लगाएं। वॉशिंगटन का कहना था कि केवल सामूहिक प्रयासों से ही मॉस्को की युद्ध मशीन को मिलने वाली आर्थिक मदद को रोका जा सकता है। अमेरिका ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कदम से रूस पर इतना दबाव बनाया जा सकेगा कि वह अपनी “बेवजह की हत्याओं” को रोकने के लिए मजबूर हो।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया है, जबकि चीन पर यह शुल्क केवल 30% रखा गया है। शुरुआत में ट्रंप ने भारत के खिलाफ 25% टैरिफ की घोषणा की थी और रूसी तेल खरीदने पर जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद उन्होंने अतिरिक्त 25% शुल्क और बढ़ा दिया। ट्रंप कई बार व्यक्तिगत तौर पर भी भारत को रूसी तेल आयात को लेकर घेर चुके हैं।
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इसकी शुरुआत 1975 में हुई थी, जब फ्रांस के राष्ट्रपति वालेरी जिस्कार देस्तें की पहल पर पहली बार 6 देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान की बैठक आयोजित की गई। इसे G6 कहा गया। अगले साल 1976 में कनाडा भी जुड़ गया और समूह G7 बन गया। बाद में 1997 में रूस को शामिल किया गया और यह G8 कहलाने लगा। लेकिन 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद उसे समूह से बाहर कर दिया गया और यह दोबारा G7 बन गया। इस वर्ष जी-7 की अध्यक्षता कनाडा के पास है।