
छठ पूजा में बांस से ही क्यों तैयार होता है दउड़ा (सौ.सोशल मीडिया)
Chhath Puja Daura: बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा का दौर चल रहा है। यह लोक परंपरा और धार्मिक आस्था का त्योहार है। इसे सुहागिन महिलाओं पति और संतान की मंगल कामना के लिए करती है। खरना पूजन के बाद से 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत में पकवान के साथ ही कई सामग्रियों का अलग-अलग महत्व होता है।
छठ पूजा में बांस से बना दउड़ा या सूप का महत्व होता है। छठ व्रत रखने वाली महिलाएं इस बांस से बने सूप में पूजन की सामग्री लेकर नदी तटों पर जाती है। यहां पर घाटों पर जब सिर पर बांस का दउड़ा लेकर चलती है जो श्रद्धा, सादगी और पवित्रता का अद्भुत संगम हर किसी को सनातन परंपरा से जोड़ता है।
छठ पर्व में बांस के सूप का महत्व होता है तो वहीं पर इसे प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है। बांस के बने सूप में पूजन की सामग्री रखी जाती है। इसमें दउड़ा में ठेकुआ, केला, नारियल, शकरकंद, फल और अन्य प्रसाद सजाकर रखते है। इन सभी चीजों को भगवान सूर्य के सामने प्रसाद के रूप में रखते है। धार्मिक मान्यता है कि बांस का दउड़ा धरती और प्रकृति की सादगी को दर्शाता है, इसलिए इसमें सजाए प्रसाद को सूर्य देव सहजता से स्वीकार करते हैं। कितना ही मॉर्डन जमाना हो जाए लेकिन परंपरा और नियमों का महत्व होना जरूरी है।
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यहां पर लोक परंपरा के अनुसार माना जाता है कि, बांस का दउड़ा मां छठी मइया की कृपा प्राप्त करने जरिया होता है। जब व्रत करने वाली महिलाओं अर्घ्य के समय दउड़ा को दोनों हाथों से ऊपर उठाकर सूर्य देव को अर्पित करने के लिए जाती है तो भक्ति और ऊर्जा वाला माहौल बनता है। बताते चलें कि, बांस के तनों से जुड़ी यह वस्तु उस धरती की देन है, जिस पर हम जीते हैं इसीलिए इसे धरती मां और प्रकृति का रूप माना गया है। इस दउड़ा को तैयार करने के लिए ग्रामीण कारीगर कई महीनों से इन्हें बनाने में जुट जाते है। पर्व के दौरान इनकी भी अच्छी आमदनी होती है। सिर्फ पूजा का साधन हैं, बल्कि लोक-संस्कृति की पहचान भी हैं. यह दिखाता है कि छठ सिर्फ सूर्य उपासना नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के अटूट संबंध का उत्सव माना जाता है।






