मंगला गौरी व्रत कथा (सौ.सोशल मीडिया)
Mangala Gauri Vrat 2025: आज सावन महीने का पहला मंगला गौरी व्रत है। हिन्दू धर्म में सावन का महीना बड़ा शुभ एवं फलदायी माना जाता है। एक तरफ सोमवार भगवान शिव के लिए तो दूसरी ओर सावन का मंगलवार मां गौरी के लिए समर्पित है। मंगलवार के व्रत को सावन में मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां गौरी की कृपा बरसती है और साधक के झोली खुशियों से भर जाती है। माना जाता है कि इस उपवास के करने से शुभ विवाह के योग जल्द बन जाते हैं। वहीं, विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। व्रत के दौरान मां मंगला गौरी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। आइए जानते हैं कथा।
पौराणिक कथा के मुताबिक, किसी समय की बात है धर्मपाल नाम का एक सेठ हुआ करता था। धर्मपाल बचपन से ही शिव का भक्त था और धनी था। समयानुसार उसका विवाह हुआ पर उसे संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी। इस बात से वह काफी परेशान रहने लगे। वह सोचने लगा कि अगर उसे कोई संतान नहीं हुआ तो उसका कारोबार भविष्य में कौन संभालेगा? ऐसे में उसकी पत्नी ने इस बात को लेकर एक पंडित से राय मांगी।
तो पंडित ने सेठ को महादेव और मां गौरी की पूजा करने को कहा। इसके बाद उसकी पत्नी ने पूरे मन से मां गौरी और महादेव की उपासना की। सेठ की पत्नी की भक्ति से प्रभावित होकर मां गौरी प्रसन्न हुईं और प्रकट होकर बोलीं हे देवी! तुम्हारी निश्छल भक्ति से मैं प्रसन्न हूं, जो भी तुम्हारी कामना है मांगो, मैं तु्म्हारी सभी मुरादें पूरी करूंगी। इसके बाद सेठ की पत्नी ने मां से संतान प्राप्ति की बात कही। मां पार्वती ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन उस संतान की आयु कम थी।
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जब एक साल बाद पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया तो पुत्र के नामकरण के दौरान धर्मपाल ने मां पार्वती के वचन से ज्योतिषी को अवगत कराया। तब ज्योतिष ने सेठ धर्मपाल को पुत्र की शादी मंगला गौरी व्रत करने वाली कन्या से कराने को कहा।
ज्योतिष के बताए मुताबिक सेठ धर्मपाल ने अपने पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली कन्या से कराया। इसके बाद कन्या के पुण्यफल से सेठ के पुत्र की आयु लंबी हुआ और वह लंबे समय तक जिया। इसलिए इस व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है।