नंदी बैल की पूजा (सौ.सोशल मीडिया)
Sawan First Somwar 2025 : शिवभक्तों के लिए सावन का महीना बड़ा महत्व रखता है। इस पूरे महीने में श्रद्धालु भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और मंदिरों में विशेष पूजन करते हैं। आपको बता दें, सावन के पहले सोमवार के दिन भारत के कई ग्रामीण इलाकों में सावन के पहले सोमवार को शिव पूजा से पहले ‘नंदी बैल’ की पूजा की जाती हैं। यह मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, शिव तक भक्तों की प्रार्थना नहीं पहुंचती।
इस दिन ग्रामीण लोग नंदी बैल को स्नान कराते हैं, हल्दी-चंदन लगाते हैं, उन्हें मीठा खिलाते हैं। इसके बाद ही लोग शिव मंदिर की ओर जल चढ़ाने के लिए प्रस्थान करते हैं। कई जगहों पर तो नंदी की शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे ग्रामीण पूरे उत्साह और भक्ति से सजाते हैं। ऐसे में आज आइए जानते हैं ये अनूठी और दिलचस्प परंपरा कहां निभाई जाती है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार,सावन के पहले सोमवार को शिव पूजा से पहले ‘नंदी बैल’ की पूजा उत्तर भारत के कुछ गांवों के साथ-साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में निभाया जाता हैं। बता दें, इन ग्रामीण क्षेत्रों में सावन के पहले सोमवार की सुबह लोग नंदी बैल को विशेष सम्मान देते हैं।
पौराणिक ग्रथों में नंदी ही वह माध्यम हैं जिनके द्वारा भक्तों की प्रार्थना भोलेनाथ तक पहुंचती हैं। इसलिए मान्यता है जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, शिव तक आपकी बात नहीं पहुंचती हैं। इसी विश्वास के कारण सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार को ग्रामीण पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ नंदी की पूजा में लीन हो जाते हैं।
इस दिन सुबह-सुबह ग्रामीण नंदी बैल को विधि-विधान से स्नान कराते हैं। स्नान के बाद उन्हें हल्दी और चंदन का लेप लगाया जाता है, जो पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। इसके उपरांत नंदी को मीठा भोजन कराया जाता है, जिसमें गुड़, रोटी या अन्य पारंपरिक पकवान शामिल होते हैं।
नंदी को भोग लगाने के बाद ही ग्रामीण पास के शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
सावन के पहले सोमवार को शिव पूजा से पहले ‘नंदी बैल’ की पूजा की यह परंपरा न केवल ग्रामीणों की भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था को दर्शाती है, बल्कि पशुधन के प्रति उनके सम्मान को भी उजागर भी करती है।
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हिंदू शास्त्रों के अनुसार, नंदी को भारतीय संस्कृति में केवल एक वाहन नहीं, बल्कि एक पवित्र जीव और शिवगणों में प्रमुख स्थान प्राप्त हैं। उन्हें धर्म और शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं। इस विशिष्ट पूजा के माध्यम से ग्रामीण यह संदेश देते हैं कि प्रकृति और उसके सभी तत्वों का सम्मान करना भी आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है।