छठ पूजा में अस्ताचल सूर्यदेव को अर्घ्य देने का यह है महत्व
Chhath Puja 2024: लोक आस्था का महापर्व छठ सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित त्यौहार है। खासतौर पर, इस पर्व की धूम यूपी, बिहार और झारखंड में देखी जा रही है। इसका धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से काफी महत्व है।
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य की उपासना की जाती है। छठ पूजा ही एक ऐसा पर्व है जिसमें उगते ही नहीं बल्कि ढलते सूर्य की पूजा का विधान है। आज 7 नवंबर 2024 छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाएगा।
व्रती महिलाएं जल में खड़े होकर भगवान सूर्य देव अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार की समृ्द्धि और खुशहाली की कामना करती हैं। छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें 36 का उपवास रखना पड़ता है।
इसके अलावा छठ पूजा में कई कठिन नियमों का पालन भी करना पड़ता है। आज हम जानेंगे कि छठ पूजा में डूबते सूर्य की उपासना क्यों की जाती है। आखिर इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं क्या हैं।
इसे भी पढ़ें :मनोकामना पूर्ति के लिए अनार के रस से करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक, जानिए विधि
छठ पूजा में इस कारण से डूबते हुए सूरज को दिया जाता है अर्घ्य
प्राप्त जानकारी के अनुसार, छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है। इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
इसके पीछे मान्यता है कि डूबते समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ में होते हैं, और इस समय इनको अर्घ्य देने से जीवन में चल रही हर प्रकार की समस्या दूर होती है और मनोकामना पूर्ति होती है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह भी है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है जहां व्यक्ति की मेहनत और तपस्या का फल प्राप्ति का समय होता है।
इसे भी पढ़ें : अक्षय नवमी की सही तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त, जानिए आंवले के पेड़ में किस भगवान का है वास
कहा जाता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा मिलती है साथ ही, डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह भी दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है, और प्रत्येक पतन के बाद फिर से एक नया सवेरा होता है।