
Hunuman Ji को क्यों नहीं बोलाते भगवान। (सौ. Freepik)
Secret of Lord Hanuman: भारतीय संस्कृति में हनुमान जी शक्ति, भक्ति और अटूट साहस के प्रतीक माने जाते हैं। बजरंगबली, संकटमोचन, पवनपुत्र जैसे अनेक नामों से पूजे जाने वाले हनुमान जी की भक्तिभावना इतनी अनूठी है कि उनके नाम के आगे आमतौर पर ‘भगवान’ शब्द नहीं जोड़ा जाता। जबकि राम, कृष्ण और शिव जैसे देवताओं के साथ यह सम्मान स्वतः जुड़ता है। आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है? इसका उत्तर उनकी विनम्रता, सेवा भाव और उनके दिव्य स्वरूप में छिपा है।
हनुमान जी को ‘भगवान’ न कहे जाने का सबसे बड़ा कारण उनका अद्भुत सेवा भाव है। वे स्वयं को सदैव श्री राम के दास और भक्त के रूप में देखते थे। उनका संपूर्ण जीवन राम भक्ति और उनकी सेवा में बीता। “मेरे प्रभु ही सर्वस्व हैं, मैं उनके चरणों का सेवक मात्र हूँ।” इस भाव को हनुमान जी ने जीवनभर जिया। वे अपनी शक्ति, विद्या और अद्भुत सामर्थ्य का प्रयोग भी केवल राम कार्य के लिए करते रहे। न कभी अहंकार किया, न ही अपने लिए किसी उपाधि की इच्छा जताई। इसी कारण भक्त उन्हें ‘सेवक के रूप में भगवान’ मानकर पूजते हैं।
हालाँकि हनुमान जी को भगवान शिव का रुद्रावतार माना जाता है, फिर भी वे स्वयं को ईश्वर के समकक्ष नहीं मानते। उनका ध्यान हर क्षण केवल श्री राम की भक्ति पर रहता है। वे चिरंजीवी हैं और कलियुग में विशेष रूप से जाग्रत देव माने जाते हैं। भक्त उन्हें शक्ति, बुद्धि और संकट समाधान के देवता के रूप में मानते हैं, क्योंकि उनका आशीर्वाद तुरंत फल देता है।
एक कथा के अनुसार, तपस्या पूर्ण होने पर ब्रह्मा जी और शिव जी ने हनुमान जी को ‘भगवान’ की उपाधि देने का प्रस्ताव रखा। लेकिन हनुमान जी ने इसे विनम्रता से ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, “यदि मैं ‘भगवान’ कहलाऊँ, तो यह मेरे आराध्य श्री राम की महिमा का अपमान होगा।” यही कारण है कि परंपरा में उनके नाम के आगे भगवान शब्द नहीं जोड़ा जाता।
इन नामों में ही उनका स्वरूप, उनका बल और उनका जीवन उद्देश्य समाहित है।
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हनुमान जी को भगवान न कहा जाना कोई परंपरा मात्र नहीं, बल्कि उनकी विशिष्ट विनम्रता और समर्पण का दर्पण है। उनका जीवन सिखाता है कि दिव्यता का असली मूल्य शक्ति में नहीं, बल्कि सेवा, निष्ठा और समर्पण में है। जो राम के लिए जिए, वही दुनिया के लिए संकटमोचन बने यही है हनुमान जी की सबसे बड़ी विशेषता।






