(फोटो सोर्स सोशल मीडिया)
सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित ‘महालक्ष्मी व्रत’ (Mahalaxmi Vrat 2024) की शुरुआत बुधवार, 11 सितंबर से हो रही है, जिसका समापन 24 सितंबर 2024 को होगा। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत होती है। वहीं, इसका समापन आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इस दौरान मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक, महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि यदि माता लक्ष्मी का ही रूप मां ‘वरलक्ष्मी’ की पूर्ण श्रद्धा भक्ति से आराधना की जाए तो मां अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ऐसे में आइए महालक्ष्मी की पूजा-विधि से लेकर व्रत नियमों के बारे में जानते हैं।
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात में 11 बजकर 11 मिनट से शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 11 सितंबर को रात में 11 बजकर 46 मिनट पर होगा। ऐसे में महालक्ष्मी व्रत का शुभारंभ 11 सितंबर से होगा। वहीं, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन व्रत का समापन होगा।
महालक्ष्मी व्रत के दिन व्रती सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति या फोटो पूजा स्थान पर स्थापित करें। पूजा में मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र पहनाएं। फिर उनको चन्दन, लाल सूत, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित करें।
पूजा में महालक्ष्मी को सफेद कमल या कोई भी कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाएं। इसके बाद माता लक्ष्मी को किशमिश या सफेद बर्फी का भोग लगाएं। इसके बाद माता महालक्ष्मी की आरती करें। पूजा के दौरान महालक्ष्मी मंत्र या बीज मंत्र का उच्चारण करें।
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मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः । इस मंत्र का जाप कमल गट्टे की माला से करना अति उत्तम माना जाता है।
महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ करते समय व्रती अपने हाथ में हल्दी से रंगे 16 गांठ का रक्षा-सूत्र बांधते हैं। आखिरी दिन यानी 16वें दिन की पूजा के बाद इसे विसर्जित कर दें। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन होता है। उस दिन पूजा में माता लक्ष्मी की प्रिय वस्तुएं रखी जाती हैं। उद्यापन के समय 16 वस्तुओं का दान शुभ होता है। हर वस्तु की संख्या 16 रखी जाती है। जिसमें चुनरी, बिंदी, शीशा, सिंदूर, कंघा, रिबन, नथ, रंग, फल, बिछिया, मिठाई, रुमाल, मेवा, लौंग, इलायची और पुए होते हैं। पूजा के बाद माता महालक्ष्मी की आरती की जाती है।
महालक्ष्मी व्रत रखने वालों को 16 दिनों तक तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दौरान घर की पवित्रता का भी ध्यान रखें।
इस व्रत में 16 दिनों तक लगातार मां लक्ष्मी की सुबह-शाम पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
महालक्ष्मी व्रत के दिनों में व्रत करने वालों को बाएं हाथ में सोलह गांठों वाली स्ट्रिंग पहननी होती है।
व्रत अवधि के दौरान खट्टी चीजों का सेवन भी न करें।
धन की देवी मां लक्ष्मी जी की पूजा के पश्चात् सोलह दूर्वा घास की गांठ को पानी में डुबोकर शरीर पर छिड़कना चाहिए। ऐसा करना शुभ माना जाता है।
लेखिका- सीमा कुमारी