क्यों जरूरी होता है जितिया व्रत तरोई के पत्ते (सौ.सोशल मीडिया)
Jitiya Vrat 2025: जितिया व्रत हिन्दू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है। बच्चों के सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला जितिया व्रत कल यानी 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा।
आपको बता दें, जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता हैं। यह व्रत मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म के इस कठिन व्रत में महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला उपवास करती हैं। उपवास और पूजा के साथ, इस व्रत की कुछ खास परंपराएं भी हैं, जिनमें तरोई के पत्तों का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं जितिया व्रत में तरोई के पत्तों का उपयोग क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत में तरोई के पत्तों का इस्तेमाल कई कारणों से खास है। सबसे पहले, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन पत्तों को बेहद पवित्र और शुद्ध माना जाता है।
पूजा के दौरान देवी-देवताओं को प्रसाद और भोग इन्हीं पत्तों पर रखकर अर्पित किया जाता है। इसके अलावा, व्रत से जुड़ी अन्य सामग्रियों को भी इन पत्तों पर सजाया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे व्रत के नियमों का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, जितिया व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ाव का भी संदेश देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां यह व्रत विशेष रूप से प्रचलित है, तरोई के पत्तों का उपयोग प्रकृति के संरक्षण और उसकी देन के प्रति आभार प्रकट करने का एक प्रतीकात्मक तरीका है।
यह परंपरा हमें सिखाती है कि हम अपनी पूजा और जीवन में प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करें। इस तरह, यह व्रत आस्था, परंपरा और पर्यावरण के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करता है, जो इसे और भी खास बनाता है।
आपको बता दें, आस्था से जुड़े लोग ये मानते हैं कि तरोई के पत्तों पर रखी गई कोई भी सामग्री यानी चीज न केवल शुद्ध बनी रहती है, बल्कि उसमें दिव्य ऊर्जा भी समाहित हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्तों में मौजूद प्राकृतिक गुण पूजा की पवित्रता को और बढ़ा देते हैं।
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यह भी कहा जाता है कि तरोई के पत्ते भगवान सूर्य और मातृशक्ति को प्रिय हैं, और इनका उपयोग करने से पूजा अधिक फलदायी होती है। इसी कारण, जितिया व्रत की पूजा तरोई के पत्तों के बिना अधूरी मानी जाती है।