
premanand ji maharaj ने बताया जीवन का सच। (सौ. Pinterest)
Premanand Ji Maharaj Ne Bataya 3 Lok Ka Sach: सृष्टि का वास्तविक स्वरूप हमारी सीमित मानवीय बुद्धि से कहीं अधिक विराट है। हम जिस मृत्युलोक में रहते हैं, उसे ही सब कुछ मान लेते हैं, जबकि यह पृथ्वी सप्तद्वीपवती और सात समुद्रों से युक्त चौदह लोकों में सबसे छोटी है। यह बोध हमें विनम्र बनाता है और माया के भ्रम से बाहर निकलने का द्वार खोलता है। इस कथा से प्रेमानन्द जी महाराज ने भविष्य के द्वार खोले है।
शास्त्र बताते हैं कि असंख्य ब्रह्मांड अस्तित्व में हैं और प्रत्येक का अपना-अपना ब्रह्मा है। जब हमारे चतुर्मुख ब्रह्मा ने अन्य ब्रह्माओं को देखा किसी के सौ, किसी के हजार, तो किसी के दस हजार मुख तब उन्हें अपनी सीमितता का बोध हुआ। परंतु यह विराटता भी श्रीकृष्ण के सामने तुच्छ है। कहा गया है कि श्रीकृष्ण के एक रोमकूप में करोड़ों ब्रह्मांड समाए हैं और माया प्रत्येक रोम में ब्रह्मांड की रचना करती है। वे ही सनातन भगवान, मायापति और समय के भी समय हैं।
यहां शिक्षा स्पष्ट है देवताओं से तुलना का अहं त्यागें। शिव जैसे महापुरुषों की नकल नहीं, बल्कि नाम-स्मरण और शरणागति ही मार्ग है। श्रीकृष्ण केवल बंसीधर नहीं, बल्कि असुरों का संहार करने वाले और माया के अधिपति हैं।
मानव समय-गणना से परे देव-गणना है त्रुटि से लेकर ऋतु, अयन, देव-दिवस तक। चार युग मिलकर देव-गणना में 12,000 वर्ष होते हैं; 71 चतुर्युगी एक मन्वंतर बनाती हैं; 14 मन्वंतर एक कल्प अर्थात ब्रह्मा का एक दिन। ब्रह्मा की आयु 100 ऐसे वर्षों की है, फिर भी महाप्रलय में वे भी भगवान में लीन हो जाते हैं। ऐसे में 60–70 वर्षों का मानव जीवन ब्रह्मा के समय के एक क्षुद्र अंश के बराबर भी नहीं यह बोध वैराग्य सिखाता है।
ये भी पढ़े: द्रौपदी का अपमान और कुरुक्षेत्र का युद्ध: क्या है असली कनेक्शन?
शास्त्र चार प्रकार के जीव बताते हैं
न मृत्युलोक के भोग, न स्वर्ग के सुख परम शांति केवल श्रीकृष्ण के कमल चरणों के ध्यान, नाम-जप और नाम-कीर्तन से मिलती है। माया से मुक्ति का उपाय है मायापति की शरण। यह यात्रा हरि-कृपा से आरंभ होती है, जो साधु-संगति का सौभाग्य देती है। कृपा के लक्षण हैं महापुरुषों की वाणी में श्रद्धा, शास्त्र-अध्ययन की चाह और नाम-जप में दृढ़ता। जब नाव (नाम-रूप), नाविक (भक्त) और अनुकूल पवन (अनुग्रह) मिलते हैं, तब भव-सागर पार हो जाता है।






