
द्रौपदी का महाभारत से रिश्ता। (सौ. Pinterest)
Draupadi ka Mahabharat se Rishta: महाभारत का स्मरण होते ही जिन पात्रों की छवि सबसे पहले उभरती है, उनमें द्रौपदी का नाम सर्वोपरि है। वह केवल पांडवों की पत्नी या युद्ध की साक्षी नहीं थीं, बल्कि वही ज्वाला थीं, जिसने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष को जन्म दिया। भले ही कुरुक्षेत्र का युद्ध पांडवों ने जीता हो, लेकिन उस विजय की प्रेरणा और संकल्प की शक्ति द्रौपदी ही थीं। उनके अपमान ने ही अधर्म की नींव हिलाई और धर्मयुद्ध को अपरिहार्य बना दिया।
द्रौपदी का जीवन साहस, आत्मसम्मान और निर्भीकता का प्रतीक रहा। भरी सभा में जब उन्हें निर्वस्त्र करने का दुस्साहस किया गया, तब उन्होंने मौन बैठे भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे महान योद्धाओं की कठोर निंदा की। वह किसी से डरने वाली नहीं थीं और न ही अन्याय के आगे झुकने वाली। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्रौपदी साधारण कन्या नहीं थीं, बल्कि अग्नि से प्रकट हुई दिव्य स्त्री थीं।
धार्मिक ग्रंथों में द्रौपदी को दिव्य कन्या कहा गया है। उनका जन्म सामान्य तरीके से नहीं, बल्कि हवन कुंड की अग्नि से हुआ था। मान्यता है कि उन्हें आजीवन कुंवारी रहने का वरदान प्राप्त था। इसी वरदान के कारण वह अपने पांचों पतियों के साथ समान भाव और संतुलन बनाए रख सकीं। पत्नी धर्म का पूर्ण पालन करने के बावजूद उनका तेज और दिव्यता अक्षुण्ण रही।
जब द्रौपदी के समक्ष पांचों पांडवों से विवाह का प्रस्ताव रखा गया, तो उन्होंने स्पष्ट शर्त रखी कि वह अपने गृहस्थ जीवन की वस्तुएं किसी अन्य महिला के साथ साझा नहीं करेंगी। पांडवों ने उनकी इस शर्त को स्वीकार किया और इसी सहमति के साथ यह असाधारण विवाह संपन्न हुआ।
पांडवों में यह नियम था कि एक समय में द्रौपदी के साथ केवल एक ही पांडव रहेगा। संकेत के रूप में कक्ष के बाहर चरणपादुका रखी जाती थी। एक दिन जब युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ थे, तब एक कुत्ता जूता उठाकर ले गया और अर्जुन अनजाने में कक्ष में प्रवेश कर गए। दंडस्वरूप अर्जुन को वनवास मिला। इसी घटना से क्रोधित होकर द्रौपदी ने कुत्ते को शाप दिया कि वह खुले में संबंध बनाएगा और संसार उसे देखेगा।
पांच पतियों में द्रौपदी का विशेष स्नेह भीम के प्रति था। कारण स्पष्ट था भीम ही वह योद्धा थे, जिन्होंने द्रौपदी के अपमान के विरुद्ध सबसे पहले स्वर उठाया। चीरहरण के समय भीम का क्रोध और दुशासन वध की प्रतिज्ञा ही द्रौपदी के प्रण की पूर्ति बनी।
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स्वर्गारोहण के समय जब द्रौपदी का पैर फिसला और वह खाई में गिरने लगीं, तब भीम ने उन्हें बचाने का प्रयास किया। शरीर त्यागते हुए द्रौपदी ने भीम से कहा, “अगर फिर जन्म मिले तो मैं फिर तुम्हारी पत्नी बनना चाहूंगी।” यह वाक्य उनके प्रेम और विश्वास की गहराई को दर्शाता है।
द्रौपदी भगवान कृष्ण को ही अपना सच्चा सखा और रक्षक मानती थीं। संकट की हर घड़ी में कृष्ण उनके साथ खड़े रहे। भरी सभा में जब अनहोनी होने वाली थी, तब भगवान कृष्ण ने ही उनकी लाज बचाई और अधर्म के सामने धर्म की रक्षा की।






